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जातिवाद की अतात्त्विकता
(अध्यापक मनोहर जैन का निवास स्थान, अध्यापक महोदय किसी पत्रिका को पढ़ रहे है, कुछ पुस्तकें टेबल पर पड़ी है, पढ़ते-पढ़ते एक पद्य पर उनका ध्यान केंद्रित हो जाता है) मनोहर-कितना अच्छा लिखा है "जांत पांत पछे नहीं कोई, हरि को भजे ___ सो हरि को होई" (दो-तीन बार इन पंक्तियों को वे दोहराते हैं उसी
समय घंटी बजती है, व दरवाजा खटखटाने की आवाज होती है।) मनोहर-अरे चन्दू ! ओ चन्दू ! चन्दू-(दूर से) आया जी! मनोहर-देखना! कौन आया है ? चन्द्-जाता हूँ जी। चन्द्-(वापस आकर कहता है) दो लड़के आए है जी, आपसे मिलना चाहते
हैं जी। मनोहर-कौन दो लड़के है ? चन्दू-अभी पूछकर आया जी। चन्दू-(वापस आकर कहता है) वे अपना नाम नन्दलाल और आनन्दकुमार
बताते है जी। मनोहर-कौनसी स्कूल के व कौनसी कक्षा में पढ़ते हैं। चन्दू-अभी पूछ आता हूँ जी। मनोहर-एक बार में किए जाने वाले काम के लिए बार-बार चक्कर काटता
है। तूं तो पुरा भोला है। चन्दू-पूरा भोला हूँ जी। मनोहर-जा, सारी बात पूछ कर आ । चन्दू-जाता हूँ, जी (इस बार वह थोड़ा विलम्ब से आवा है) मनोहर-अरे ! इतनी देर लगादी। चन्दू-देर लग गयी जी। आपने कहा था जी कि सारी बात पछ कर आना
__ जी तो मैंने उनसे सारी बातों की जानकारी की जी।
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