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बात-बात में बोध
दुःखी रहता है तो वह कहता है--समय बड़ा खराब है, यह ऋजुसूत्र नय का प्रयोग है। बंगाल की एक धटना है। वहां तारादेवी सम्प्रदाय का एक योगी वामा रहता था। एक दिन सुबह-सुबह वह नदी के किनारे घूम रहा था। उसकी नजर एक जागीरदार पर पड़ी जो नदी में स्नान करने के बाद सूर्य की उपासना कर रहा था । वामा को उसकी उपासना देख मजाक सूझा और वह उस पर पानी के छीटे उछालने लगा, जागीरदार थोड़ा गुस्से में आकर बोला-वामा ! यह भी कोई मजाक का समय है ? वामा बोला-तू दुनिया को धोखा दे सकता है, मुझे नहीं दे सकता। सच बता, क्या तु मन से अभी मयूरभंज कम्पनी में जूते नहीं खरीद रहा था । वामा अतीन्द्रिय ज्ञानी था। उसके सही कथन को सुन वह चुप हो गया । थोड़ी देर बाद बोला-वामा! तुम सही कह रहे हो, मेरा चिन्तन अभी यही चल रहा था कि जल्दी से रवाना होकर मयूरभंज कम्पनी में जूते खरीदूं। यह उदाहरण ऋजुसूत्र नय के हार्द को समझने के लिये पर्याप्त है। पांचवा है-शब्द नय। लिंग, वचन, संख्या आदि के द्वारा जहां वस्तु पर विचार किया जाता है वह शब्द नय है । जैसे-गायक और गायिका, दोनों में गायन कला की समानता होने पर भी पुरुष व स्त्री का भेद है । संख्या भेद से एक लड़का और कई लड़के यह अंतर
शब्द नय के द्वारा गम्य है। किशोर---ऋजुसूत्र नय और शब्द नय दोनों ही वस्तु की पर्याय पर विचार
करते हैं, फिर इनमें अन्तर क्या है ? महावीर प्रसाद-ऋजुसूत्र नय केवल वर्तमानपर्यायग्राही है, लिङ्गादि का भेद
होने पर भी वह वाक्य व वस्तु में भेद नहीं करता। जबकि शब्द नय काल, लिङ्ग आदि के कारण वर्णनीय वस्तु में अर्थ भेद करता है । छठा नय है--समभिरूढ़ नय। पर्यायवाची शब्दों में निरूक्ति के भेद से अथ भेद पर विचार करना समभिरूढ़ नय का विषय है। इसके अनुसार हर शब्द का स्वतंत्र अर्थ है, चाहे फिर वे पर्यायवाची क्यों न हो, चाहे उनमें लिङ्गादि का कोई भेद न भी हो। जैसे-इन्द्र और पुरन्दर शब्द आपस में पर्यायवाची हैं फिर भी दोनों का अर्थ भिन्न है। इन्द्र नाम ऐश्वर्यशाली का है, पुरन्दर नाम पुरों (दैत्य बसतियों) का नाश करने वाले का है। मेधावी, कवि, विद्वान, सुधी आपस में
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