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नयवाद
भाषा का प्रयोग । जैसे-घृत पात्र को हम घी का बर्तन कह देते हैं जबकि बर्तन तो पोतल, तांबे या किसी अन्य धातु का है। हम पानी को गिरते देखकर कह देते हैं, परनाला पड़ रहा है। यह व्यवहार नय की भाषा है जबकि निश्चय में तो पानी गिरता है। यह व्यवहार भाषा असत्य नहीं है क्योंकि जन प्रचलित है। भाषा के इन दो
प्रयोगों के आधार पर नय के दो भेद बताये गये हैं। किशोर कुमार-क्या इन दो भेदों में ही भाषा के समग्र प्रयोगों का समावेश
हो जाता है ? महावीर प्रसाद-इनके अतिरिक्त जैन दर्शन में नय के सात प्रकार और भी
बताये गये है। १. नैगम २. संग्रह ३. व्यवहार ४. ऋजुसूत्र ५. शब्द ६. समभिरूद ७. एवंभूत। इनमें पहले तीन भेदों में द्रव्य पर तथा शेष चार में द्रव्य की पर्यायों पर मुख्य रूप से विचार किया जाता है। इसी आधार पर इन सात भेदों में पहले तीन द्रव्यार्थिक
और आगे के चार पर्यायार्थिक नय के रूप में प्रसिद्ध हैं। किशोर-द्रव्य और द्रव्य की पर्याय से क्या तात्पर्य है ? महावीर प्रसाद-द्रव्य से मतलब है-पदार्थ मात्र । द्रव्य की पर्याय से मतलब
है-विवक्षित वस्तु की विविध अवस्थाएँ, परिणतियां। उदाहरण के तौर पर-सोना एक द्रव्य है, कंगन, हार, चूड़ियां आदि अनेक उसकी पर्याय है। इस तरह घड़ा एक द्रव्य विशेष हैं, वह किस चीज का बना है, किस देश का है, किस मौसम के लायक है, ये सब घड़े की पर्याय है। इस प्रकार की पर्याय हर पदार्थ में अनन्त होती है । द्रव्य को समग्रता से जानने के लिए उसकी पर्यायों को जानना जरूरी है। पर्याय
बदलती रहती हैं पर मूल द्रव्य नहीं बदलता। किशोर-क्या नयवाद में द्रव्य और पर्याय दोनों पर विचार किया जाता है ? महावीर प्रसाद-तुम ठीक कह रहे हो। द्रव्य और पर्याय पर विचार करके
ही हम समय सत्य को जान सकते हैं। किशोर-वस्तु में पर्याय परिवर्तन किस तरह होता है ! महावीर प्रसाद-पर्याय परिवर्तन आकास्मिक नहीं होता। यह पदार्थ मात्र में
प्रतिक्षण घटित होने वाली घटना है। इसके पीछे भी कारणों की एक लम्बी शृखला है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, परिस्थिति व जागतिक नियम आदि अनेक इसमें कारण भूत बनते हैं। एक वस्तु का उत्पादन कम और मांग ज्यादा होने पर उसकी कीमत बढ़ जाती
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