________________
१३८
बात-बात में बोध महावीर प्रसाद-बीकानेर में भी तो बहुत मोहल्ले व गलियां हैं। बीकानेर
बताने मात्र से तुम्हे मेरे निवास स्थान का ज्ञान नहीं हो जाएगा। किशोर-आपका कथन सही है । महावीर प्रसाद-तो सुनो, बीकानेर के रांगड़ी चौक की दक्षिण गली में एक
हरे रंग का मकान है जिस पर बरडिया निवास लिखा है, वह मेरा
निवास स्थान है। वैसे वह भी मेरा स्थायी निवास स्थान नहीं है। किशोर-वह फिर कौन-सा है ? महावीर प्रसाद-स्थायी निवास स्थान मेरी अपनी आत्मा है । जो इस जन्म
से पहले थी और बाद में भी रहेगी। जिसका कभी वियोग नहीं होता। ईट व सीमेन्ट से बना मकान तो आज है, कल न भी रहे । यह शरीर भी एक अवधि तक मेरा है, एक दिन यह भी छुट जायेगा। इसलिये शरीर को भी मैं व्यवहार बुद्धि से ही अपना मानता हूँ।
निश्चय बुद्धि से यह शरीर भी मेरा अपना नहीं है । किशोर-प्रोफेसर महोदय ! आप तो छोटी सी बात को भी बड़ा विस्तार
दे देते हैं, दर्शन के प्रोफेसर जो ठहरे । महावीर प्रसाद-इस विस्तार के द्वारा मैं तुमको एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत से
परिचित करवाना चाहता हूँ। किशोर-बड़ी कृपा होगी। महावीर प्रसाद-ध्यान से सुनना। जैन दर्शन के नये सिद्धांत के बारे में मैं
तुमको बता रहा हूँ। अनन्त धर्म वाले पदार्थ के किसी एक धर्म का ग्रहण कर अन्य धर्मों का खण्डन न करने वाले विचार को नय कहते हैं। प्रमाण का वर्णनीय विषय अखण्ड वस्तु है और नय का वर्णनीय विषय खण्ड वस्तु है। एक साथ में समस्त वस्तु का प्रतिपादन वाणी
द्वारा असंभव है, इसलिए नयवाद ज्यादा उपयोगी है । किशोर -नय के कितने प्रकार हैं प्रोफेसर महोदय ? महावीर प्रसाद--एक ही विषय पर जितनी तरह से विचार या कथन किया
जा सकता है उतने ही नय के प्रकार बन सकते हैं । नय के मूल भेद दो हैं-१. निश्चय नय २. व्यवहार नय । निश्चय नय से तात्पर्य है-वस्तु का वास्तविक स्वरूप। हो सकता है कि व्यवहार में वह स्वरूप सामने न भी आये । जैसे-सर्प व्यवहार में काले रंग का लगता है किन्तु निश्चय नय की भाषा में वह पाँच वर्ण वाला होता है। क्योंकि हर दिखाई देने वाली वस्तु में पांच वर्ण पाये जाते हैं। व्यवहार नय से तात्पर्य है-लोक व्यवहार में प्रचलित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org