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स्यावाद (कक्षा का दृश्य अध्यापक कुर्सी पर बैठा है, सामने बैंचों पर कुछ लड़के बैठे हैं) अध्यापक-प्यारे विद्यार्थियों ! स्कूल का नया सत्र प्रारम्भ हो गया है।
अध्ययन भी तुम्हारा व्यवस्थित चालू हो गया है। एक काम जो मुझे आज सम्पन्न करना है, वह है कक्षानायक की नियुक्ति । मैं तुम लड़कों से ही जानना चाहता हूं कि तुम्हारी नजर में इसके लिए कौन योग्य
रमेश-सर, मैं विनोद का नाम इसके लिए प्रस्तावित करता हूँ। दो छात्र-हमको मान्य नहीं है सर! रमेश-विनोद से बढ़कर हमारे में कोई योग्य लड़का नहीं, उसने पिछले वर्ष
हमारी कक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त किये थे। दो छात्रों में से कोई एक-सर्वाधिक अंक पा लेना कोई मापदण्ड नहीं है
मास्टर साहब ! लड़कों पर कण्ट्रोल कर सके ऐसी क्षमता भी तो मॉनिटर में होनी चाहिए। इस क्षमता का उसमें नितान्त अभाव
है। भीरु स्वभाव वाला क्या दूसरों पर नियन्त्रण कर सकता है ? विनोद-सर, कक्षानायक बनने में मेरा स्वयं का आकर्षण नहीं है और न मैं
इसके लिए अपने को योग्य भी समझता हूँ। अध्यापक-तो कोई दूसरा नाम पेश किया जाये। विनोद-अध्यापक महोदय ! मेरी नजर में अशोक इसके लिए उपयुक्त है।
लड़कों पर नियन्त्रण करने में भी वह सक्षम है और भाषण देने में भी
बड़ा दबंग है। दो छात्र-हम नहीं चाहते इसे । अध्यापक-क्यों, क्या कठिनाई है तुम्हें ! (दो में से एक)-यह प्रकृति का बड़ा झगड़ाल है। आये दिन लड़कों से
मगड़ता रहता है। अशोक (जोश में)-सर, मुट्ठी भर इन लड़कों के कहने से मैं झगड़ाल सिद्ध
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