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________________ ९ गुणस्थान ( संतों का स्थान, मुनि अपने आसन पर विराजमान है। विमल, कमल दोनों भाई सामने वज्रासन में बैठे हैं ।) कमल - मुनिवर ! एक समय था जब मां और दादी मां हम भाइयों को बार बार आपके दर्शनों के लिए कहा करती थी किन्तु मन में भावना ही नहीं जगती और अब हम स्वयं आपके पास आने को उत्सुक रहते हैं । विमल --- उस समय हम दर्शन करने को रूढ़ि समझते थे पर अब लगने लगा है कि यहां आने में तो लाभ ही लाभ है । मुनिवर --ऐसी भावना का होना शुभ बात है । रखो । अगर कोई जिज्ञासा हो तो विमल - मुनिवर ! एक जिज्ञासा है। हमारी दादी मां नित्य सबेरे उठकर सामायिक करती है । सामायिक में एक वाक्य उनके मुख से हम कई बार सुन चुके हैं कि वह दिन धन्य होगा जिस दिन मुझे छडा गुणस्थान आएगा । फिर कषाय को क्षीण कर तेरहवें गुणस्थान को पाऊंगी और एक दिन समस्त कर्मों से मुक्त होकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त बनूंगी। मुनिवर - यह तो बहुत ऊंची भावना है । कमल - पर यह छट्ठा और तेरहवां गुणस्थान क्या है, इसका क्या महत्त्व है, जो दादी मां रोज सबेरे-सबेरे यह पाठ बोलती है। इसे हम समझना चाहते हैं । मुनिवर - तुमको अपनी दादी मां से ही पूछ लेना चाहिये था । विमल - हम दादी मां से पूछ लेते, पर आपके पास जिज्ञासा रखने के पीछे हमारा एक दूसरा उद्देश्य और भी है । मुनिवर -- वह क्या है ? विमल - हम जानते हैं कि आपसे हम एक बात पूछेंगे तो दस नई बातें और जानने को मिलेंगी । मुनिराज - तब अवश्य बताऊंगा । स्थिरता से सुनोगे तो ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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