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________________ पुनर्जन्म ६५ कहा है कि - " आत्मा सदा अपने लिये नये नये वस्त्र बुनती है तथा आत्मा में एक नैसर्गिक शक्ति है, जो ध्रुव रहेगी और वह अनेक बार जन्म लेगी।" दार्शनिक शोपनहार ने भी पुनर्जन्म में अपनी सहमति व्यक्त की है । महेन्द्र -- मुनिवर ! आपकी समझाने की शैली बहुत सुन्दर है। मैं तो रात दिन नास्तिकता की बातें सुन-सुन कर अपने धर्म व सिद्धान्त को भूल गया था । आपने मेरे अज्ञान को मिटा दिया। मेरे मन में फिर से आत्मा, परमात्मा व पुनर्जन्म पर आस्था जमी है। एक बात आप और बतायें, हम यह त्याग, तपस्या और धर्म क्यों करें ? क्या इनसे परलोक सुधरता भी है ? मुनिराज - यह तो तुम भी नहीं कहोगे कि इससे परलोक बिगड़ता है । महेन्द्र – यह तो नहीं कह सकता। लेकिन परलोक सुधरता है इसका भी क्या - निश्चय है ? मुनिराज - युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी अपने प्रवचनों में अक्सर कहा करते है कि धर्म केवल परलोक को ही नहीं वर्तमान जीवन को भी सुधारता है । अत्यधिक भोग और असंयम से जहाँ परलोक बिगड़ता है वहां वर्तमान जीवन भी दुःखी और रुग्ण बनता है । जो व्यक्ति संयम और साधना से जीवन बिताते हैं उनका मन सदा प्रसन्न रहता है और शरीर भी स्वस्थ रहता है । ऐसे व्यक्तियों का जीवन बड़ा आनन्ददायी होता है। उनका यह लोक तो अच्छा होता ही है परलोक भी निश्चित रूप से अच्छा होता है । महेन्द्र --- मुनिराज ! प्रणत हूँ आपके पूज्य चरणों में। आपने मेरे भीतर गड़े हुए कांटों को निकाल दिया। सच्चा ज्ञान देकर मेरे पर असीम उपकार किया । संतोष- उपकार तो मुनिराज आपने मेरे पर किया है। मैं अपने बेटे को गलत विचार धारा की ओर जाते देखकर दुःखी रहती थी। आपने मुझे सदा लिए चिन्तामुक्त कर दिया। आज मुझे पूर्ण संतोष है । मुनिराज -- महेन्द्र ! जो सन् तूने आज जाना है उस पर स्थिर रहना । गलत विचारधारा से कभी प्रभावित मत होना, सदा धर्म के सम्मुख रहना । महेन्द्र - मैं आपके वचनो को कभी भूलूंगा नहीं ( मां संतोष व महेन्द्र दोनों मुनि को वंदन करते हैं ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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