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________________ बात-बात में बोध एक घटना ब्राजील में जन्मी मार्टी नाम की लड़की से सम्बन्धित है । वह अढाई वर्ष की उम्र में ही अपने पूर्व जन्म की बातें बताने लग गई थी! उसने अपने घर, शहर व माता-पिता सबका परिचय दिया। उसने यह भी कहा कि मेरी मृत्यु टी० बी० की बीमारी के कारण हुई। उसकी बातों को सुनकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ पर जब खोजबीन की गई तो सारी बातों की पुष्टि हुई। सबके मन में उसके कथन पर विश्वास पैदा हुआ। डॉ० स्टीवनसन सन् १९६२ में प्रत्यक्ष उससे मिले और सारी जानकारी ली। अनेक वैज्ञानिकों के अब तक पुनर्जन्म सम्बन्धी पचासों निबन्ध व ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें जो घटनायें है वे काल्पनिक नहीं, वास्तविक हैं। जहां कहीं इस तरह की घटना सुनने को मिलती है, ये यिद्वान स्वयं उन स्थानों पर जाकर उसकी प्रामाणिकता की छानबीन करते हैं। उसके बाद ही उस पर सत्य का लेबल लगाते हैं । पूर्वजन्म की स्मृति होना पुनर्जन्म की. सिद्धि का सबलतम प्रमाण है। महेन्द्र-पूर्वजन्म यदि है तो उसकी स्मृति सबको होनी चाहिए पर ऐसा होता नहीं, क्या कारण है ? मुनिराज-जैसा पहले बताया गया, पूर्व जन्म की स्मृति ज्ञान की निर्मलता, पूर्वजन्म सम्बन्धी स्थिति विशेष का निमित्त पाकर होती है। सबको स्मृति होना जरूरी नहीं है। सबको इस एक जन्म की भी बातें याद नहीं रहती हैं। फिर पूर्वजन्म की स्मृति तो बहुत आगे की बात है। मनोवैज्ञानिकों ने अतीत की स्मृति न होने को अच्छा बताया है । अगर एक व्यक्ति को पूर्व जन्म की सब बातें याद रहे कि अमुक ने मेरे साथ अच्छा व्यवहार किया, अमुक ने बुरा तो वह सोचते-सोचते पागल बन जायेगा। रात दिन परेशान रहने लगेगा। महेन्द्र-पूर्वजन्म की स्मृति नहीं होने के क्या कारण हैं ? मुनिराज-आचार्यों ने इसके कारणों का विश्लेषण करते हुए लिखा है-- "जायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स वा पुणो । तेण दुक्खेण संमुढो, जाइ सरइ न अप्पणो ।। व्यक्ति जन्म और मृत्यु की वेदना से इतना संमूढ हो जाता है कि उसे अपने पूर्वजन्म की स्मृति नहीं रहती। वेदना वर्तमान जीवन में भी व्यक्ति की स्मृति को लप्त कर देती है तो पूर्वजन्म की स्मृति भला कैसे सम्भव है ? कांचंग नामक दार्शनिक ने भी इस विषय पर अपने विचार व्यक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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