SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आभामण्डल तनाव और ध्यान (२) तनाव और ध्यान तनाव क्यों ? निवारण कैसे ? २१५ महा एकला तप 4 २२६ जैन योग महावीर जीवन जैन चिन्तन अहिंमा विचारक अहिंसा तत्त्व श्रमण अनेकांत अनेकांत घट तुम घट मन का तपयोग तप समाधि तर्क का दुरुपयोग तर्क की कसौटी पर तीन प्रकार के धर्म तीर्थ और तीर्थंकर तीसरा नेत्र (१) तीसरा नेत्र (२) तीसरी आंख खुल जाए तुम अनन्त शक्ति के स्रोत हो तुम अनन्त शक्ति के स्रोत हो तुम तटस्थ नहीं हो तुम्हारा भविष्य तुम्हारे हाथ में तुम्हारा भविष्य तुम्हारे हाथ में तुम्हारा शोषण वरदान बन जाता है तुम्हारा शोषण वरदान बन जाता है तेजोलेश्या (कुंडलिनी) तेजोलेश्या और अतीन्द्रिय ज्ञान तेजोलेश्या और प्राण तेजोलेश्या का ध्यान : निष्पत्तियां तेजोलेश्या का विकास तेजोलेश्या का स्थान तेजोलेश्या के दो रूप तेरापंथ और अनुशासन तेरापंथ और अनुशासन तेरापंथ का एक महान शासनसेवी उठ गया ० 0U Mr Ww घट तुम ६७ २५६ १५८ ا १२८ १२६ م विचार का तेरापंथ जन योग जैन योग जैन योग प्रेक्षा लेश्या जैन योग जैन योग जैन योग तेरापंथ जैन धर्म जैन धर्म १२७ ل له २५ يمر १२० गद्य साहित्य | २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy