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________________ शक्ति % ८० ३०४ G २८५ ३०६ २७२ ४५ २६३ * * २५२ तुम ६४ 2 चित्त की शक्ति चित्त-शुद्धि और अनुप्रेक्षा निष्पत्ति चित्त-शुद्धि और अनुप्रेक्षा अप्पाणं चित्त-शुद्धि और कायोत्सर्ग निष्पत्ति चित्त-शुद्धि और कायोत्सर्ग अप्पाणं चित्त-शुद्धि और लेश्या ध्यान निष्पत्ति चित्त-शुद्धि और लेश्या-ध्यान अप्पाणं चित्त-शुद्धि और शरीर प्रेक्षा निष्पत्ति चित्त-शुद्धि और शरीर-प्रेक्षा अप्पाणं चित्त-शुद्धि और श्वास प्रेक्षा निष्पत्ति चित्त-शुद्धि और श्वास-प्रेक्षा अप्पाणं चित्त-शुद्धि और समाधि निष्पत्ति चित्त-शुद्धि और समाधि अप्पाणं चित्त-शुद्धि के साधन चित्त-समाधि के सूत्र (१) अप्पाणं/समाधि चित्त-समाधि के सूत्र (२) अप्पाणं समाधि चिन्तन और निर्णय अर्हम् चिन्तन और परिणाम कैसे सोचें चिन्तन और वैराग्य अर्हम् चिन्तन के विकास में जैन आचार्यों का योग । चिन्तन के विकास में जैन आचार्यों का योग जैन दर्शन चिर सत्यों की अनुस्यूति चेतना का जागरण चेतना चेतना का तीसरा आयाम किसने चेतना का प्रस्थान: अज्ञात की दिशा किसने चेतना का रूपान्तरण (१) चेतना का रूपान्तरण (२) चेतना की क्रीडा भूमि : अप्रमाद किसने चेतना की दिशा का परिवर्तन मन चैतन्य का अनुभव निष्पत्ति १०० ३४ जैन १२६ १४० तट २०३ २६८ मैं हूं २६६ १०३ २२ / महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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