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२१६ चिन्तन के क्षितिज पर
बतलाइए कि ऐसी स्थिति में मेरे जैसे प्रभावहीन व्यक्ति को अणुव्रत में रहना चाहिए या नहीं?
अमनजी ने कहा-'मेरी बात सुनकर आचार्यश्री मुस्कराए। उन्होंने मेरी ओर देखते हए कहा--आप स्थिति के इस पहल को भी देखें कि वे अनेक व्यक्ति मिलकर भी एक व्यक्ति की सचाई का सामना नहीं कर सके। तभी तो उन्हें छिपकर कार्य करना पड़ा । बस, आचार्यश्री के इस कथन ने ही मेरी सारी निराशाओं को धो डाला । मैं निराशाओं से घिरा हुआ गया था, परन्तु आशाओं से भरा हुआ वापस आया हूं।"
__ अमनजी के उस समय के उत्साह को देखकर मैं गद्गद हो गया। वह कृत्रिम नहीं, एक सहज और उल्लास भरा उत्साह था। उसी के आधार पर वे आजीवन अणुव्रतों के लिए अपने समय और शक्ति का महत्त्वपूर्ण सहयोग देते थे। ____ लगभग बारह वर्ष पूर्व सन् १९८० के ग्रीष्मकाल में ग्वालियर चातुर्मास के लिए जाते समय मैं कुछ दिनों के लिए दिल्ली में रुका था । अमनजी को जब मेरे आगमन का पता चला तो काफी वृद्ध और अशक्त होने पर भी वे अणुव्रत भवन में रखे कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। उसके बाद भी लगभग घंटा भर बातचीत के लिए वहां रुके । वृद्ध जन के उस सहज सौहार्द ने मुझे अंदर तक भिगो दिया। यही मेरा उनसे अंतिम मिलन था।
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