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जयपुर के प्रमुख तेरापंथी श्रावक १९६
से संबद्ध कर दिया और व्यय-भार भी तेरापंथी समाज को सौंप दिया । उस समय भी सूरजमलजी ने २५०० रुपये दिये । वर्तमान में वह उच्च माध्यमिक के रूप में चल रहा है।
६. सदासुखजी दूगड़ सदासुखजी दूगड़ के पिता खेतसीदासजी सं० १९२५ में फतहपूर (शेखावाटी) से आकर जयपुर में बसे थे। सदासुखजी उस समय १७ वर्ष के किशोर थे। उनका विवाह पहले ही हो चुका था। जयपुर में आने के बाद उन्होंने जयाचार्य से गुरुधारणा की। बड़े उच्चकोटि के श्रावक हुए। प्रतिदिन ३-४ सामायिक करते। थोकड़े बहुत आते थे। पत्नी भी उसी प्रकार की धार्मिक प्रवृत्ति की थी। दोनों प्रायः सामायिक में थोकड़ों आदि का खूब स्वाध्याय करते । उनके पुत्र नहीं था, अतः बीदासर से चन्दनमलजी को गोद लाये । सं० १९७४ में ६५ वर्ष की अवस्था में दिवंगत हो गये।
१०. सूरजमलजी सुराणा सूरजमलजी सुराणा के पिता मन्नालालजी गदर के समय सं० १६१४ में दिल्ली से आकर जयपुर बसे थे। उन्होंने जयाचार्य के पास गुरुधारणा की । सूरजमलजी का जन्म सं० १९२७ में हुआ। वे बड़े तत्त्वज्ञ श्रावक थे। स्थानकवासी विद्वान् संत आते तो वहां भी जाया करते थे। वहां दान-दया आदि विषयों पर खूब चर्चा करते। एक बार स्थानकवासी मुनि माधोलालजी का वहां चातुर्मास था। सूरजमलजी मुनि पूनमचन्दजी से रामचरित सुनने के बाद वहां जाया करते थे। सद्भाव युक्त चर्चा चलती रहती थी। एक दिन मुनि माधोलालजी ने कहातेरापंथ में दान और दया है ही नहीं । सूरजमलजी ने कहा-शीतकाल में यदि मैं आपके पास आऊं और शीत से कांपने लगूं तो क्या आप अपनी चादर मुझे दे देंगे? मुनि माधोलालजी ने कहा-हम चादर को परठ देंगे।
सूरजमलजी-मैं स्पष्ट समझा नहीं, थोड़ा खुलासा करिये। मुनिजी–हम चादर से ममत्व उतारकर उसे पृथक् रख देंगे।
सूरजमलजी-तो क्या पहले आपका उस पर ममत्व था? इस पर मुनि माधोलालजी कुछ बोल नहीं पाये, चुप्पी साध गये। उनके श्रावकों को भी वह चुप्पी अखरी तोसही पर बोलने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं था। मुनि माधोलालजी ने बात को मोड़ देते हुए कहा-तेरापंथ में तुम्हारी जैसी खोपड़ियां कितनी हैं !
सूरजमलजी ने उनके व्यंग्य की उपेक्षा करते हुए कहा-मैं तो बहुत साधारण हूं। मेरी जानकारी बहुत न्यून है । विशेष जानकार तो हमारे यहां श्रावक गुलाबचन्दजी लूणिया, सूजानमलजी खारेड़, नानगरामजी नागौरी तथा
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