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________________ जयपुर के प्रमुख तेरापंथी श्रावक १६७ तुम्हारे हित के लिए त्याग करवा दिये हैं। मुझे विश्वास है कि तुम मेरे आदेश का आदर करोगे और त्याग का यथावत् पालन करोगे । वे स्वीकार या अस्वीकार कुछ भी नहीं कर सके । फिर जयपुर चले आये। पहले तो वे बड़ी असमंजसता में रहे, परन्तु अन्ततः मन को दृढ़ किया और मित्रों के आगमन के समय श्मसान भूमि में जाकर सामायिक करने लगे । दो-चार दिन ऐसा किया तब मित्र मण्डली ने अपना दूसरा स्थान बना लिया। फलतः वे सहज ही उस कुसंगति से बच गये। __एक दिन श्मसान भूमि में वे सामायिक कर रहे थे, उसी समय उनका एक जुआरी मित्र आया और उनकी अंगुली में से हीरे की अंगूठी निकाल ली। जाते समय उन्हें धर्म और गुरु की सौगंध दिला दी कि यह बात किसी तीसरे को मत कहना । पनराजजी घर आये तो पत्नी ने नंगी अंगुली देखकर पूछ लिया कि अंगूठी कहां गयी? वे मौन रहे । तब सबने जान लिया कि जुए में हार आये हैं। जयाचार्य उस समय जयपुर में ही थे। शिकायत उन तक पहुंची। उन्होंने भी पूछा तो पनराजजी ने इतना ही कहा कि मेरे त्याग यथावत् हैं, परन्तु अंगूठी के विषय में बतलाने की स्थिति में नहीं हूं । सभी ने उनकी बात को व्यर्थ समझा। ___ कई वर्षों पश्चात् जुआरी मित्र ने अंगूठी लौटाई और सबके सम्मुख अपनी स्थिति बतलाते हुए कहा-जोधपुर में इसे गिरवी रखकर २० हजार रुपये लिये और व्यापार किया। उसमें ४० हजार की कमाई कर ली, तब अंगूठी (छुड़ाकर) तुम्हें देने आया हूं। तुम्हारी अंगूठी ने मेरी लाज रख ली । परिवार वालों को तब पता चला कि अंगूठी कहां गयी थी? जयाचार्य ने सुना तो उनकी गम्भीरता की प्रशंसा की। ६. सरदारमलजी लूनिया सरदारमलजी लूनिया पनराजजी के पुत्र थे। उनका जीवनकाल सं० १९०४ से १९६६ तक का था। जयाचार्य की उन पर बहुत कृपा थी। कहा जाता है कि विहार आदि के अवसर पर उन्हें पहुंचने में देरी हो जाती तो जयाचार्य भी दो क्षण प्रतीक्षा कर लेते। समाज में भी उनका बड़ा सम्मान था। अपनी दुकान पर जाने के लिए ज्यों ही कटला में प्रविष्ट होते, प्रत्येक दुकानदार उनके सम्मान में खड़ा हो जाता। वे किसी से कुछ पूछ लेते या दो क्षण बात कर लेते तो वह स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता। जयाचार्य का दाह-संस्कार सरदारमलजी के बाग में ही किया गया था। उसे अब सरकार ने ले लिया और म्यूजियम के पार्श्ववर्ती क्षेत्र में मिला लिया। वहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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