________________
आचार्यश्री तुलसी : कुशल अध्यापक १७३ नहीं होती, अपितु इसलिए होती है कि वे किसी के विकास में सहयोग दे रहे हैं।
तेरापंथ का साधु-साध्वी वर्ग आज कार्यक्षम, जागरूक तथा युगभावना को समझने तथा आवश्यकता होने पर उसे नया मोड़ देने का सामर्थ्य रखने वाला है, उसकी उस क्षमता के उपार्जन का श्रेयोभाग एकमात्र आचार्यश्री को ही जाता है। इसलिए एक अध्यापक के रूप में आचार्यश्री के जीवन का यह एक अपूर्व कौशल कहा जा सकता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org