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सदाचार से जुड़े प्रश्न १४३
'स्थायी' जोड़ा गया है। स्थायी प्रभाव क्यों नहीं होता? इस प्रश्न में यह स्वतः सिद्ध है कि एक बार प्रभाव अवश्य होता है, पर वह टिकता नहीं। यदि प्रभाव होता ही नहीं तब तो वक्ता के लिए सोचने की बात थी। परन्तु प्रभाव होता तो है, टिकता नहीं, तब आप लोगों के लिए सोचने की बात है। वस्तु का ही अभाव हो तो पात्र का उसमें कोई दोष नहीं, परन्तु वस्तु डालने पर यदि वह पात्र में टिक नहीं पाती हो, तो अवश्य ही उसमें कोई-न-कोई छेद है।
प्रश्न के दूसरे अंश का उत्तर यह है कि जब दुराचरण के संसर्ग का भय निरन्तर रहता है, तब उससे बचने के लिए बार-बार सावधान करना भी आवश्यक है। भूल बार-बार हो तो सुधार भी बार-बार अपेक्षणीय है। अन्यथा शेष में भूल ही रह जाती है । सम्भव है, आप यह महसूस करते हों कि ऐसा करके छात्र वर्ग की स्मृति-शक्ति पर अविश्वास प्रकट किया जा रहा है । परन्तु ऐसी बात नहीं है। कहा जाता है कि असत्य बात को सौ बार दुहराने से वह सत्य लगने लगती है। तब फिर सन्तुलन रखने के लिए सत्य को दुहराना भी आवश्यक हो जाता है। अन्यथा असत्य को ही सत्य समझा जाने लगेगा। सत्य को कभी सम्मुख आने का अवसर ही नहीं रहेगा।
प्रश्न : सदाचार और नैतिकता के लिए इतना प्रयास होते हए भी भ्रष्टाचार प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । इसका क्या कारण है ? स्वतन्त्रता के बाद यह बहुत ही तीव्रता से बढ़ा है।
उत्तर : इसमें मुख्य कारण तो मनुष्य की अपनी कमजोरी ही है । पर कुछ असर वातावरण का भी कहा जा सकता है। पर इस प्रश्न को एक-दूसरे दृष्टिकोण से यों भी देखा जा सकता है-होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति में यह माना जाता है कि जब औषधि दी जाती है, तब अन्दर जमा हुआ रोग उभरने लगता है। रोग का यों अप्रत्याशित उभार देखकर घबराने की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि उससे दबी हुई रुग्णता बाहर निकल जाती है तब व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद उभरने वाली भ्रष्टाचारिता भी एक प्रकार से रोग का उभार ही है। परतन्त्रता की स्थिति में दबे हुए मानसिक दोष उभर कर एक बार निकल जायेंगे तब फिर आशा करनी चाहिए कि फिर से सदाचार के वातावरण का निर्माण होगा।
प्रश्न : आपकी दृष्टि में सदाचार साधन है या साध्य ?
उत्तर : सदाचार को मैं साधन मानता हूं, साध्य नहीं । साध्य तो जीवन की पूर्ण पवित्रता अथवा निर्दोषता है। सदाचार के द्वारा उस उच्च आदर्श तक पहुंचा जाता है।
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