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अमूर्त चिन्तन
इस सूत्र को पकड़ लेता है वह कभी दूसरे का अनिष्ट नहीं कर सकता। 'मैं दूसरे का अनिष्ट कर रहा हूं'-यह सोचना मूर्छा है। वह नहीं जानता कि पर्दे के पीछे क्या हो रहा है ? भीतर क्या हो रहा है ? जिसके मन में मैत्री की भावना का जागरण होता है वह कभी किसी का अहित नहीं कर सकता।
सबके प्रति आत्मीय या पारिवारिक भावना होने पर मन प्रफुल्ल रहता है। उसे किसी से भी भय नहीं होता। शत्रुता और भय, मैत्री और अभय-ये दो युगल हैं। जिसका मन भय से भरा होता है, वही दूसरे को शत्रु मानता है। जिसके मन में कोई भय नहीं होता, वह अनिष्ट करने वाले को अज्ञानी मान सकता है किन्तु शत्रु नहीं मानता। सब जीवों के हितचिंतन का बार-बार अभ्यास करने में मैत्री का संस्कार पुष्ट होता है।
मनुष्य के ज्ञात संबंधों की कड़ी बहुत छोटी है और अज्ञात की श्रृंखला बहुत प्रलम्ब है। ज्ञात स्पष्ट है और अज्ञात अस्पष्ट, इसलिए शत्रु, मित्र आदि की कल्पनाएं खड़ी होती हैं। अज्ञात सामने आ जाए तो ये भाव स्वत: शांत हो सकते हैं। जन्म-मृत्यु की लम्बी परम्परा से कौन अपरिचित है? किन्तु इसे साधारण लोग नहीं समझते। साधक आत्म-तुला के पथ पर अग्रसर होता है; उसे यह स्पष्ट हो जाए तो बहुत अच्छा है, किन्तु बहुत कम व्यक्तियों को अतीत ज्ञात होता है। लेकिन इतना स्पष्ट है कि मैं पहले भी था, अब भी हूं और आगे भी रहूंगा। अतीत में था तो कहां था, कौन मेरे संबंधी थे, आदि प्रश्न स्वतः खड़े हो जाते हैं। इस दृष्टि से साधक का मन सबके प्रति मित्रभाव धारण कर लेता है। 'मित्ति से सव्वभूएसु वेरं मज्झ न केणई-मेरा सबके साथ मैत्री-भाव है। कोई मेरा शत्रु नहीं है। आंतरिक चेतना से जैसे-जैसे यह भाव पुष्ट होता जाता है वैसे-वैसे साधक के मन में शत्रुता का भाव नष्ट होता चला जाता है। मित्र-मन सर्वत्र प्रसन्न रहता है और अमित्र-मन अप्रसन्न । शत्रु-मन अशांत, हिंसक, घृणायुक्त और क्लिष्ट रहता है। उसमें प्रतिशोध की आग निरन्तर प्रज्वलित रहती है। मित्र-मन में ये सब दोष नष्ट हो जाते हैं।
___मैत्री-भावना का साधक स्वयं अपने को कष्ट में डाल सकता है, किंतु दूसरों को कष्ट नहीं देता। उसकी दृष्टि में पर-शत्रु जैसा कोई रहता ही नहीं। शत्रु का भाव ही अनिष्ट करता है। खलीफा अली अपने शत्रु के साथ वर्षों लड़ता रहा। एक दिन शत्रु हाथ में आ गया। उसकी छाती पर बैठ भाला मारने वाला ही था. इतने में शत्रु ने मुंह पर थूक दिया। अली को एक क्षण गुस्सा आया और बोला-'आज नहीं लड़ेंगे।' लोगों ने कहा, 'कैसी मूर्खता कर रहे हैं ? वर्षों से शत्रु हाथ आया और आप छोड : ' अली ने
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