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________________ २० अमूर्त चिन्तन जैसे-जैसे 'इमं सरीरं अणिच्चं' की शक्ति और भावना शक्तिशाली होती जाएगी और इनकी तरंगें प्रबल होंगी तो पूर्वगत संस्कार की तरंगों को समाप्त कर देंगी, विनष्ट कर देंगी। यदि यह बात हमारी समझ में आ जाये तो फिर कोई कारण नहीं है कि 'इमं सरीरं अणिच्चं' दोहराते-दोहराते हम ऊब जाएं, या निराश हो जाएं । हम बोलकर प्रकम्पन पैदा करते हैं । परन्तु ये प्रकम्पन इतने कारगर नहीं होते। जब भावना के प्रकम्पन उसके साथ जुड़ते हैं तो वे अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं। वे शक्तिशाली प्रकम्पन पहले के प्रकम्पनों को नष्ट कर देते हैं। अनित्य अनुप्रेक्षा : एक वैज्ञानिक प्रक्रिया जो कुछ भी दृश्य है, वह शाश्वत नहीं है। प्रतिक्षण परिवर्तन हो रहा है। बुद्ध ने कहा-सब क्षणिक हैं। एक समय से अधिक कोई नहीं ठहरता। साधक की दृष्टि अगर खुल जाये तो उसे सत्य का दर्शन संसार का प्रत्येक पदार्थ दे सकता है, वही उसका गुरु हो सकता है। एक शिष्य वर्षों तक आचार्य के पास रहा, परन्तु उसकी दृष्टि खुली नहीं। शिष्य हताश हो गया। गुरु ने कहा-'अब तू यहां से जा, यहां नहीं सीख सकेगा।' वह आश्रम से चला आया। एक पीपल के वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगा। एक पत्ता टूट कर नीचे गिरा और दृष्टि मिल गई। गुरु के पास आया और बोला-घटना घट गयी। गुरु ने पूछा-कैसे ? वृक्ष के नीचे बैठा था। पत्ता गिरा और अचानक मुझे स्मरण हो आया कि मुझे भी गिरना है, मरना है। गुरु ने कहा-'बस उसे ही नमस्कार करना था, पत्ता तेरा गुरु है।' भरत चक्रवर्ती अपने कांच-महल में सिंहासन पर स्थित' शरीर का अवलोकन कर रहे थे। अचानक उन्हें शरीर परिवर्तन का बोध हुआ। यह वही शरीर है जो बचपन में था और अब जवानी में है पर कितना बदल गया। सब कुछ परिवर्तन हो रहा है, किन्तु परिवर्तन के पीछे जो एक अपरिवर्तनीय सत्ता है, वह जैसे पहले थी अब भी वैसी ही है और आगे भी वैसी ही रहेगी। दृष्टि उपलब्ध हो गई। एक के अनित्य का दर्शन सबकी अनित्यता का दर्शन है। जैसे यह शरीर बदल रहा है वैसे ही पुद्गलों का परिवर्तन चल रहा है। वे इस चिंतन की गहराई में डूबे और संबोधि-केवलज्ञान को उपलब्ध हो गए। कारलाइल के जीवन में भी ऐसी ही घटना घटी। वह अस्ती वर्ष की अवस्था पार कर चुका था। अनेक बार बाथरूम में गया था। किन्तु जो घटना उस दिन घटी, वह कभी नहीं घटी। स्नान के बाद शरीर को पौंछते-पौंछते देखता है यह पारीर कितना बदल गया । जीर्ण हो गया। किन्त भीतर जो जानने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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