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________________ आत्मानुशासन अनुप्रेक्षा २३७ है, उसको उत्तर करने के लिए, उसका उदात्त रूप करने के लिए, प्रायश्चित करने के लिए, विशोधि करने के लिए, मन को निर्मल बनाने के लिए, जो व्यसन या आदत का घाव हो गया है, उस घाव को भरने के लिए, उस शल्य को मिटाने के लिए, उन बुरी आदतों के द्वारा जो मूर्छा के परमाणु, कर्म के परमाणु, चारों ओर शरीर और मन पर व्याप्त हो गए हैं, उन पापकारी परमाणुओं का उन्मूलन करने के लिए, मैं कायोत्सर्ग करता हूं। कायोत्सर्ग सब दुःखों से मुक्ति दिलाने वाला है, स्वभावों को बदलने वाला है। जो कायोत्सर्ग की प्रक्रिया को नहीं जानता, वह स्वभाव परिवर्तन नहीं कर सकता। सेल्फ हिप्नोटिज्म के विशेषज्ञों के चार सूत्र प्रस्तुत किए हैं। इस पद्धति का पहला सूत्र दिया है-'ऑटो रिलेक्सेशन।' इसका अर्थ है-स्व-शिथिलीकरण। यह कायोत्सर्ग की ही प्रक्रिया है। कायोत्सर्ग किए बिना स्वभाव-परिवर्तन की प्रक्रिया फलित नहीं हो सकती। चाहे स्वभाव को बदलना हो, चाहे किसी बीमारी की चिकित्सा करनी हो तो सबसे पहले कायोत्सर्ग करना होगा। यह पहला सूत्र है। स्वभाव परिवर्तन का दूसरा सूत्र है-सेल्फ एनेलिसिस-अनुप्रेक्षा। जिसे हम बदलना चाहते हैं, जिस आदत में परिवर्तन लाना चाहते हैं, उसका विश्लेषण करना होता है। उसकी अनुप्रेक्षा करनी होती है। आत्म-निरीक्षण और आत्म-विश्लेषण करना होगा। सेल्फ एनेलिसिस हिप्नोटिज्म का दूसरा सूत्र है। कायोत्सर्ग की पद्धति का दूसरा सूत्र है-अनुप्रेक्षा। दोनों समानान्तर रेखाओं पर चलते हैं। यदि मैं क्रोध को छोड़ना चाहता हूं तो मुझे सबसे पहले अपना आत्म-विश्लेषण करना होगा कि क्रोध क्यों बुरा है ? क्यों छोड़ना चाहता हूं ? यदि वह बुरा नहीं है तो छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। क्या क्रोध बुरा है-इसका मैं विश्लेषण करूं। इसका विश्लेषण करूंगा, अनुप्रेक्षा करूंगा, गहरे में उतरूंगा, अपाय विचय ध्यान की स्थिति तक पहुंच जाऊंगा। वहां मुझे ज्ञात होगा कि क्रोध एक प्रकार का ज्वर है। वह जब शरीर में उतरता है तब शरीर को तोड़ देता है और शक्तियों को क्षीण कर देता है। क्रोध मस्तिष्क का ज्वर है, हृदय का ज्वर है और एड्रीनल जब क्रोध करता है तब सबसे पहला प्रहार मस्तिष्क पर होता है। मस्तिष्क ज्वर-पीड़ित हो जाता है। उस समय इतनी उत्तेजना और इतनी अतिरिक्त ऊर्जा खपती है कि बड़ी बेचैनी छा जाती है और सारा अंग-प्रत्यंग प्रतप्त जैसा हो जाता है। क्रोध का दूसरा प्रहार होता है-हृदय पर। क्रोध आते ही हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। उसकी गति तेज हो जाती है और उसे अस्वाभाविक ढंग से काम करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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