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________________ २१८ अमूर्त चिन्तन आज के सारे विरोधाभास, आज की सारी समस्याएं-चाहे आर्थिक क्षेत्र में हैं, चाहे राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में हैं उनका मूल उत्स है-मनुष्य की क्रूरता। क्रूरता के कारण ही आर्थिक कठिनाइयां पैदा हो रही हैं। आज जो आर्थिक समस्याएं हैं उनके मूल में सबसे बड़ा कारण है-मनुष्य की क्रूरता। क्या क्रूरता के बिना कोई आदमी किसी को धोखा दे सकता है ? किसी को लूट सकता है ? मिलावट कर सकता है ? रिश्वत ले सकता है ? ये सारी बातें नहीं हो सकतीं। एक क्रूरता के कारण सब बुराइयां हजम हो रही हैं। कभी सोचने का अवसर ही नहीं मिलता कि ऐसा नहीं होना चाहिए। एक बीमार पड़ा है-मृत्यु-शय्या पर। पर जब तक अधिकारियों की पेट-पूजा नहीं हो जाती तब तक हॉस्पीटल में भर्ती होना भी कठिन हो जाता है। एक आदमी को आवश्यक कार्य से कहीं यात्रा करनी है, पर जब तक रिश्वत का सहारा नहीं लेता तब तक टिकट ही नहीं मिलती। एक व्यवसायी गायों को, भैंसों को बिना मौत मार देता है। चारे में ऐसी मिलावट करता है कि चारा खाते ही पशु मरने लग जाते हैं। क्या क्रूरता के बिना ऐसा सम्भव है ? क्या आटे में मिलावट, मसालों में मिलावट, दाल में मिलावट, क्रूरता के बिना सम्भव है ? कभी सम्भव नहीं है। यह सारी आर्थिक भ्रष्टाचार की कहानी क्रूरता की कहानी है। . दूसरे के प्रति हमारा व्यवहार क्रूरता से मुक्त हो। और यदि वह क्रूरता से मुक्त होता है तो अनेक समस्याएं अपने आप समाहित हो जाती हैं, फिर उनके समाधान खोजने की आवश्यकता नहीं होती। हमारे भीतर अनन्त चेतना का स्रोत प्रवाहित हो रहा है। अपने आपको उस स्रोत में आप्लावित रखने के लिए उस स्रोत को देखना आवश्यक है। जो उस स्रोत को देख लेता है उसके आस-पास मैत्री की धाराएं फूट पड़ती हैं। मैत्रीभाव विश्व-बन्धुत्व का पहला सूत्र है, जो व्यक्ति प्रतिक्षण जागृत रहता है और द्वेषभाव से दूर रहता है, वह प्रशस्त जीवन जी सकता है। प्रशस्त जीवन का अर्थ है ऋजुता और मृदुता का विकास। ऋजु और मृदु व्यक्ति समभाव की साधना कर सकता है। जो समभाव की साधना करता है, वह आत्मभाव को प्राप्त होता है और आत्मभाव ही अनन्त चेतना का जागरण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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