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________________ सहिष्णुता अनुप्रेक्षा २११ __आज असहिष्णुता चरम सीमा तक पहुंच चुकी है। दो भाई हैं। दो मित्र हैं। तब तक भाईचारा और मित्रता निभती है जब तक आपस में कुछ कहा सुना नहीं जाता। मन के प्रतिकूल कहते ही भाईचारा टूट जाता है। मित्रता समाप्त हो जाती है। शिष्य गुरु के प्रति विनीत होता है, समर्पित होता है। विनय और समर्पण तब तक अखण्ड रहता है जब तक गुरु शिष्य को कुछ कठोर शब्द नहीं कहते और शिष्य का स्वार्थ सम्पादित होता रहता है। कुछ कहा, कुछ ताप दिया कि शिष्य मोम की तरह पिघलकर बिखर जाएगा, टूट जाएगा। ___ अनुशासन तब तक सम्भव नहीं है, जब तक सहिष्णुता का विकास नहीं होता। हम अनुशासन लाने का बहुत प्रयत्न करते हैं। हम चाहते हैं कि अनुशासन का विकास हो, विद्यार्थी और पुलिसकर्मी में अनुशासन आए, मजदूर और कर्मचारी में अनुशासन आए। हर क्षेत्र में अनुशासन बढ़े। सब चाहते हैं, किन्तु वे इस आधारभूत तत्त्व को भूल जाते हैं कि सहिष्णुता की शक्ति का विकास हुए बिना अनुशासन का विकास नहीं हो सकता। इसलिए हमारा सारा प्रयत्न सहिष्णुता की शक्ति को विकसित करने के लिए होना चाहिए। तब अनुशासन स्वयं फलित होगा। सहिष्णुता का विकास शक्ति का विकास है। इस शक्ति के सहारे दूसरों की कमियों को भी सहा जा सकता है और दूसरों की विशेषताओं को भी सहा जा सकता है। आज अनुशासन की समस्या बहुत जटिल हो गई है, क्योंकि मनुष्य असहिष्णु बन गया है। सहिष्णुता के बिना अनुशासन का विकास नहीं हो सकता। अनुशासन एक परिणाम है और सहिष्णुता की शक्ति है उसका कारण। सहिष्णुता के प्रयोग सहिष्णुता की शक्ति का विकास करने के लिए अग्र-मस्तिष्क (फ्रन्टल लॉब या एमोशनल एरिया) पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना होगा। प्रेक्षाध्यान की दृष्टि से इसे शान्ति केन्द्र, ज्योति-केन्द्र का स्थान कहा जाता है। असहिष्णुता की आंच यहां है। यहां चूल्हा जल रहा है। तापमान का नियंत्रण हाइपोथेलेमस द्वारा होता है। मस्तिष्क का एमोशनल एरिया ही सारी उत्तेजनाओं, आवेगों और असहिष्णुता का जनक है। इसको बदले बिना या इस पर नियंत्रण किए बिना सहिष्णुता की शक्ति का विकास नहीं हो सकता। इसको बदलने का कारगर उपाय है-ज्योति-केन्द्र और शान्ति-केन्द्र पर ध्यान ) करना। यह एक बात है। दूसरी बात है कि इन दो केन्द्रों पर सफेद रंग का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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