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अमूर्त चिन्तन
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वह बलवान् होता है, स्थूल में कोई विश्वास नहीं होता। मांस का काम तो बहुत छोटा काम है । हमारे शरीर में मूल है - नाड़ी संस्थान । जीवन का अर्थ है- नाड़ी संस्थान की सक्रियता । दो ही सबसे ज्यादा शक्तिशाली हैं- एक है नाड़ी-संस्थान और दूसरा है ग्रन्थि - संस्थान। ये ही सारा प्रकाश फैला रहे हैं । सब कुछ करा रहे हैं। मांस कोई बड़ी बात नहीं है। दूसरी धातुओं में भी उतनी ताकत नहीं है ।
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मानसिक असंतुलन के ये पांच कारण हमारे सामने हैं। हम चाहते हैं, मानसिक संतुलन बना रहे। हम जानते हैं कि मन स्वस्थ रहे, मन शांति में रहे। एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है - शरीर- प्रेक्षा, शरीर को देखना । इससे नाड़ी - संस्थान दृढ़ होता है और कुछ रसायनों की पूर्ति भी करता है । यह ज्ञात होना चाहिए कि कुछ विटामिनों को हमारा शरीर पैदा करता है । सब बाहर से ही हम नहीं लेते हैं । हम भीतर से भी लेते हैं । सूर्य का ताप लगता है और विटामिन 'डी' अपने आप आ जाता है । इसका सबसे अच्छा स्रोत है - सूर्य का ताप । और भी बहुत सारे रसायन, प्रोटीन हमारा शरीर पैदा करता है, पर करेगा तब जब हम अनावेग की स्थिति में रहेंगे। यह ध्यान का प्रयोग, मानसिक संतुलन का प्रयोग केवल मोक्ष पाने के लिए ही नहीं है, वर्तमान जीवन को सुख से जीने के लिए भी है ।
इसी मानसिक असंतुलन के सन्दर्भ में हम प्रेक्षा ध्यान प्रणाली पर विचार करें। जो कार्य औषधियों और विद्युत् से सम्पन्न होता है, क्या वह कार्य प्रेक्षा- ध्यान से सम्भव है ? इस प्रश्न का उत्तर हां में दिया जा सकता है । प्रेक्षा-8 - ध्यान के अन्तर्गत हम जो छोटे-छोटे प्रयोग करते हैं, वे इस संदर्भ में बहुत ही महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं । जो काम औषधियां नहीं कर पातीं वह काम ध्यान के ये छोटे-छोटे अभ्यास कर देते हैं । प्रश्न है मस्तिष्क को विश्राम देना । प्रश्न है विचारों की उधेड़बुन को समाप्त करना । कायोत्सर्ग से जितना विश्राम मस्तिष्क को मिलता है, स्नायु संस्थान को जितना आराम मिलता है उतना विश्राम किसी दूसरी प्रणाली से नहीं मिलता । न औषधियां और न विद्युत् ही इतना आराम दे पाती हैं ।
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