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__ अमूर्त चिन्तन
चाहें तब उस पर ताला लगा सकते हैं। इसीलिए दरवाजे का, ताले का, कुंजी का विकास हुआ कि आदमी सुरक्षित रह सके। यह अपनी सुरक्षा का एक बहुत बड़ा माध्यम बनता है।
___हमारी एक ऐसी चेतना जाग जाए कि आवेश आने की स्थिति में हम तत्काल दरवाजा बन्द कर दें और शांत रह सकें। यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है और केवल मनुष्य ही ऐसा कर सकता है, पशु नहीं कर सकता। पशु के सामने उत्तेजना की स्थिति आएगी, वह उत्तेजना में चला जाएगा। चाहे भैंस हो, भैंसा हो, सूअर हो, रीछ हो, कोई भी पशु हो, वे ऐसे आवेश में आएंगे, फुफकारने लग जाएंगे और तमतमा उठेंगे। मनुष्य में यह क्षमता है कि आवेश की स्थिति होने पर भी वह अनाविष्ट रह सकता है और आवेश पर नियंत्रण कर सकता है। इस चेतना का विकास मनुष्य ने किया इसीलिए वह संतुलन का जीवन जी सकता है।
मानसिक असंतुलन का दूसरा कारण है-आग्रह। आग्रह बहुत असंतुलन पैदा करता है। आप सूक्ष्मता से ध्यान देंगे तो पता चलेगा कि पारिवारिक कठिनाइयों में जिद्द की प्रकृति सबसे ज्यादा तकलीफ देती है। एक बात पकड़ ली, बस अब नहीं छोड़ेंगे। समूचे परिवार में कलह का वातावरण बन जाता है। एक घर में दीवारें खिंच जाती हैं, कई चूल्हें जल जाते हैं। चूल्हें जल जाएं, दीवारें खिंच जाएं, कोई बड़ी बात नहीं, किंतु कटुता के कारण बाप और बेटा दस-दस वर्ष तक मिलते नहीं। बाप दूसरे व्यक्ति के आने पर हंस-हंस कर बात करता है, किंतु लड़का सामने आने पर आंखें घुमा लेता है, चेहरा घुमा लेता है और अकस्मात् ही सामने आ जाए तो आंखों में गर्मी उतर जाती है। बड़ी अजीब स्थिति होती है। इसमें आग्रह का बहुत बड़ा योग होता है।
मानसिक असंतुलन का तीसरा कारण है-पक्षपात। यह अपना संतुलन भी बिगाड़ता है और सामने वाले का संतुलन भी बिगड़ता है। ये शिकायतें भी बहुत आती हैं कि मैं पिता का विनीत था और अभी हूं किंतु पिता ने ऐसा पक्षपात किया कि एक बड़े भाई को तो सारा धन दे दिया और मुझे अंगूठा दिखा दिया। बड़े भाई के प्रति छोटे भाई का, मां के प्रति लड़के का और सौतेली मां हो तो फिर कहना ही क्या ! यह पक्षपात का भी एक बड़ा प्रश्न है। मालिक का भी अपने कर्मचारी के प्रति इस पक्षपात के कारण मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाता है।
मानसिक असंतुलन का चौथा कारण है-असंतुलित आहार। असंतुलित आहार के कारण भी संतुलन बिगड़ जाता है। यह विषय पर कम ध्यान दिया
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