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________________ अध्यात्म और विज्ञान अनुप्रेक्षा १५९ विज्ञान के क्षेत्र में अध्यात्म की तरह अनेक अनुसंधान हुए हैं। आचार्यों ने अनेकों गूढ साधनाएं कीं, तभी अध्यात्म की अनुभूतियां प्राप्त हुई। गुस्सा या आवेग जब आता है तो तत्काल दो क्षण के लिए श्वास रोक लें। गुस्सा स्वत: ठण्डा पड़ जाएगा। इसी तरह के अनेक प्रयोग किए गये हैं। योग शास्त्र को जानने वाले खोज करके देखें कि प्राचीन आचार्यों ने कितने प्रयोग किए हैं। प्राचीन समय में हजारों कोस दूर बैठा साधु किसी अन्य साधु को सिर्फ याद करके उसके आसन को डुला (हिला) सकता था और वह समझ जाता था कि उसे याद किया गया है। मैं जो बोल रहा हूं, मेरे ये शब्द आप साक्षात् नहीं सुन रहे हैं। मेरे ये शब्द ब्रह्माण्ड से टकराकर आपके पास पहुंचते हैं। क्या वह विज्ञान नहीं है ? इस दृष्टि से धर्म और विज्ञान ये दो धाराएं या शाखाएं नहीं हैं, एक ही चेतना-प्रवाह की दो कड़ियां हैं। मूल एक है, टहनियां दो हैं। जिस तरह विज्ञान की उपलब्धियों का उपयोग विनाशकारी कार्यों में किया गया है, जो सर्वविदित है, उसी प्रकार धर्म का उपयोग भी अनुचित ढंग से किया गया है और कहीं-कहीं तो उसका अत्यधिक दुरुपयोग भी किया गया है। इस तरह हम देखते हैं कि विज्ञान और धर्म का क्षेत्र भिन्न-भिन्न होते हुए भी मूल एक है। यह विशाल नगरों के फ्लैट सिस्टम की तरह है, जहां एक ही मकान में कई होते हैं और उसमें रहने वाले वर्षों से वहां रहते हुए भी एक-दूसरे से अपरिचित से बने रहते हैं। __ अत: आवश्यकता है कि विज्ञान के परिणामों पर अंकुश रखा जाए और वह अंकुश है धर्म और अध्यात्म। धर्म की वैज्ञानिकता धर्म वैज्ञानिक तत्त्व है। वैज्ञानिक तत्त्व वह होता है जो देश-काल से अबाधित हो, जिसका निष्कर्ष सब देश-काल में समान हो। अमेरिका में प्रयोग करने से सफलता मिलती है तो भारत में भी उसके प्रयोग से सफलता मिलेगी। सर्वत्र और सर्वदा जो प्रयोग में एकरूप में रहता है, वह वैज्ञानिक तत्त्व होता है। धर्म इसकी कसौटी में परम वैज्ञानिक तत्त्व है। धर्म की आराधना लन्दन में, भारत में या अमेरिका में कहीं पर भी करो, सबको आनन्द मिलेगा। आज, कल और परसों कभी उसकी आराधना करो, उसके परिणाम में कोई अन्तर नहीं आएगा। धर्म की आराधना करने वाले मुक्त हुए हैं, वर्तमान में हो रहे हैं और भविष्य में होंगे, इसलिए धर्म प्रायोगिक है, त्रैकालिक है और देश-काल से अबाधित है। इसीलिए वह परम वैज्ञानिक तत्त्व है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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