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सम्प्रदाय निरपेक्षता अनुप्रेक्षा
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है। अर्थ का ह्रास और विकास होता है। आज एक दृष्टि से धर्म शब्द सम्प्रदाय का द्योतक बन गया। उसका अर्थ भी कुछ बदल गया। इसलिए नए शब्द के चुनाव की अपेक्षा हुई। हमने सोचा कि जीवन विकास के लिए कोई ऐसा शब्द चुना जाए जो धर्म की मूल भावनाओं का स्पर्श करने वाला हो। जीवन में धर्म का विकास, अध्यात्म का विकास और नैतिकता का विकास करने वाला शब्द हो। ये शब्द आज विवाद का विषय बन गए हैं, इसलिए नए शब्द को ढूंढना चाहिए जो आज के मानस का स्पर्श कर सके, पर कोई प्रतिक्रिया पैदा न करे। इन दृष्टियों से सोचने पर एक शब्द जंचा और वह है-'जीवन-विज्ञान ।' इसकी प्रक्रिया का किसी धर्म-विशेष या सम्प्रदाय-विशेष से सम्बन्ध नहीं है। इसका सीधा सम्बन्ध है, जीवन से। प्रत्येक प्राणी को जीवन-विज्ञान का अनुभव होना चाहिए। जीवन के साथ विज्ञान शब्द इसलिए जुड़ता है कि जीवन के अपने नियम हैं। प्रत्येक वस्तु के साथ नियम जुड़े हुए हैं। कुछ हमें ज्ञात है, कुछ अज्ञात है। सारे नियम हम नहीं जानते । अनेक नियम अज्ञात ही रह जाते हैं। जैसे-जैसे विकास हो रहा है अज्ञात नियम ज्ञात होते जा रहे हैं। मनुष्य इन ज्ञात नियमों को उपयोग करता है। किन्तु जो ज्ञात हुआ है, वह एक बिन्दु मात्र है, अज्ञात का समुद्र अभी भी अछूता ही पड़ा है। ज्ञात अल्प है, अज्ञात अनन्त है। हमारे जीवन के भी अनन्त नियम हैं। जीवन विकास के अनगिनत नियम हैं। हम बहुत थोड़े नियमों को जानते हैं
और जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं, जानने की सीमा भी आगे बढ़ती जाती है। हम जीवन के नियमों को जान सकें, उनका उपयोग कर सकें और सफलता की दिशा में जीवन को आगे बढ़ा सकें-यह है जीवन-विज्ञान का उद्देश्य।
जीवन-विज्ञान का अर्थ है-जीवन के नियमों की खोज। उन नियमों की खोज जिनके द्वारा दृष्टिकोण का परिष्कार किया जा सकता है, व्यवहार और आचरण का रूपान्तरण किया जा सकता है।
जीवन के तीन मुख्य पक्ष हैं-ज्ञानात्मक पक्ष, भावनात्मक पक्ष और क्रियात्मक पक्ष । हम जानते हैं, यह हमारा ज्ञानात्मक पक्ष है। हम भावना से जुड़े हुए हैं, यह हमारा भावनात्मक पक्ष है। हम आचरण करते हैं, यह हमारा क्रियात्मक पक्ष है। दर्शन वही है जो जीया जा सके
जैन आचार्यों ने नयवाद का विकास किया। नयवाद के दो आधार बनते हैं-सापेक्षता और समन्वयां व्यक्ति और समाज हमारे सामने हैं। कुछ लोग एकांतत: व्यक्तिवादी वृत्ति के होते हैं। वे सारा भार व्यक्ति पर डाल देते
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