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समन्वय अनुप्रेक्षा
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सकते। हजारों-लाखों वर्ष बीत चुके होते हैं। हजारों पीढ़ियां बीत चुकी होती हैं। उसे लगता है-क्षण भर बीता है। पर यहां के हजारों-लाखों वर्ष बीत जाते
अनेकान्त की सार्थकता
यदि हम अपने भीतर छुपे हुए चोर को और अपने भीतर छुपे हुए साहूकार को पहचान सकें और उस पहचान के बाद भीतर के चोर को सुलाकर साहूकार को जगा सकें तो अनेकान्त की सार्थकता हमारे व्यवहार में हो सकती है। इसीलिए ध्यान और साधना चल रही है। हम इसमें संलग्न हैं। ध्यान के बिना अनेकान्त का मार्ग स्पष्ट और प्रशस्त नहीं होता। ध्यान इसलिए कर रहे हैं कि जो पर्याय अव्यक्त है, जो साहूकार सोया पड़ा है, उस साहूकार को जगा सकें, उन पर्यायों को व्यक्त कर सकें। और जो चोर जागा हुआ है, उसे सुला सकें, मुख्य को गौण कर सकें और गौण को मुख्य कर सकें। जो कुर्सी पर बैठा है उसे नीचे बिठा सकें और जो नीचे बैठा है उसे कुर्सी पर बिठा सकें।
__ आज यह बहुत आवश्यक प्रतीत होता है कि शिक्षक वर्ग में ध्यान और जीवन-विज्ञान का समन्वय हो। इसी के आधार पर वे नया चिन्तन देने में सक्षम हो सकते हैं। अभी-अभी राजस्थान के एजुकेशन कमीश्नर ए० के० भटनागर बेंकोक जाकर आए हैं। वे बता रहे थे कि वहां की सरकार अपने कर्मचारियों के लिए ध्यान की व्यापक व्यवस्था पर चिन्तन कर रही है। सभी देशों में यही चिन्ता व्याप्त है कि आदमी के व्यवहारों को, आचरणों को कैसे बदला जाए। आज व्यक्ति, समाज, देश और राष्ट्र में जो विभिन्न प्रकार की चिन्ताएं व्याप्त हैं उनसे मुक्त होने के लिए नए चिन्तन की जरूरत है, नए दर्शन की जरूरत है। वह नया चिन्तन और नया दर्शन ध्यान और कर्म-दोनों का समन्वय ही हो सकता है, जीवन विज्ञान और पुस्तकीय . ज्ञान-दोनों का समन्वय हो सकता है।
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