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________________ कर्तव्यनिष्ठा अनुप्रेक्षा ११५ जो कुछ परिवर्तन हुआ, उसकी पृष्ठभूमि में युवक वर्ग था। विद्यार्थियों ने सारे शासन को पलट दिया। आज ऐसा कहीं भी हो सकता है। यदि आज के समूचे विद्यार्थी, हिन्दुस्तान के करोड़ों-करोड़ों विद्यार्थी अगर बात को पकड़ लें तो शायद हिन्दुस्तान का भी काया-कल्प हो सकता है। किन्तु मुझे लगता है कि शक्ति का सही नियोजन नहीं हो रहा है। शक्ति का सही दिशा में नियोजन हो और उसके साथ विवेक और सन्तुलन हो जाए और सही मार्ग-दर्शन हो तो उसकी सम्भावनाएं बढ़ सकती हैं। आज निर्माण की अपेक्षा है। किन्तु निश्चित मानिए निर्माण तब तक नहीं होगा जब तक कि चरित्र का विकास नहीं होगा। आज हिन्दुस्तान की सारी कठिनाई, सारी गरीबी इस बात पर पल रही है कि यहां भ्रष्टाचार बहुत है। पुल बनता है तो एक ही वर्षा में टूट जाता है। बांध बनता है तो एक ही वर्षा में उसमें दरारें पड़ जाती हैं। मकान बनता है तो काम में आने से पहले ही ढह जाता है। यह सारा इसीलिए होता है कि सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार खुलकर चल रहा है। आज धन के प्रति इतना व्यापक मोह है कि जो होना चाहिए उसका उलटा परिणाम आ रहा है। आज के युवक को यथार्थ की भूमिका का अनुभव करना चाहिए। पहली बात है कि केवल बातों पर भरोसा नहीं, कार्य क्षमता में विश्वास होना चाहिए। एक व्यक्ति ने बताया-अमरीकी लोग सप्ताह में दो दिन तो पूरी छुट्टी मनाते हैं, किन्तु पांच दिन वे निष्ठापूर्वक तन्मयता से काम करते हैं। जितना काम वे पांच दिन में करते हैं, उतना ही हिन्दुस्तानी युवक शायद पांच सप्ताह में नहीं कर सकता। कर्तव्यनिष्ठा के बिना ऐसा सम्भव नहीं होता। कर्तव्यनिष्ठा के लिए दो बातें आवश्यक हैं। पहली बात है आत्मसेवा का संकल्प-स्व-निर्माण। दूसरी बात है तीर्थ-सेवा का संकल्प-जन-निर्माण। एक बात याद आ रही है. दादा धर्माधिकारी की। जब मैं दिल्ली शिविर में था तो उन्होंने एक बात कही, 'यदि अणुव्रत वाले या जैन लोग समता का प्रयोग करें, एक ऐसा कारखाना, एक ऐसा उद्योग और फैक्टरी चलाएं जिसमें कोई मालिक न हो और मजदूर न हो, सब समभागी हों, काम करने वाला हर व्यक्ति उसे संचालित करने वाला हो, उसका डायरेक्टर, उसका श्रमिक सब-के-सब समभागी हों। न कोई स्वामी हो, न कोई सेवक। न कोई मिल-मालिक हो. न कोई मजदूर। अगर एक भी ऐसा प्रयोग हो जाय तो हम देखेंगे कि अध्यात्म में आज भी प्राण है और अध्यात्म में आज भी शक्ति है। अध्यात्म और अपरिग्रह का आज भी प्रयोग किया जा सकता है। आध्यात्मिक समतावाद का प्रयोग किया जा सकता है और यदि वह नहीं किया जा सकता तो फिर अध्यात्म, अपरिग्रह और समता-इन शब्दों को सदा के लिए दफना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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