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मालाकार को अंगुलियों में कला है और धाग में फूलों को गॅथ, वह कलाकार बन जाता है। कला तरु में नहीं होती। उसके पास कोरे फूल होते हैं। कलाकार होता है मालो। तरु संग्रह करना नहीं जानता उसे स्वार्थी लोग भला कलाकार कैसे मानें ? मालाकार संग्रह करने में पटु होता है
और वह सहज ही कलाकार बन जाता है। ____ मुनिश्री दुलहराजजी ने इन शब्द-पुष्पों को चुना और यह एक पुष्पहार बन गया। इसके सौन्दर्य की मीमांसा पहनने वाले करेंगे। मैं संग्रह से दूर रहा हूं तब भला आलोचना में क्यों फँसँगा ? मेरी वह कृति अकृति होती है जिसमें परम श्रद्धेय आचार्य तुलसी के वरदान की स्मृति न हो। गुरुदेव ने मुझे वह दिया, जिसे पाकर अतृप्ति भी होती है और परम तृप्ति भी।
- आचार्य महाप्रज्ञ
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