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अनभव का उत्पल
आत्मलोचन
आत्मलोचन वह है, जो परलोचन की वृत्ति को निर्मूल कर दे।
आत्म-निरीक्षण वह है, जो परदोष-दर्शन की दृष्टि को मिटा दे।
दूसरों की आलोचना वही कर सकता है, जिसमें आत्मविस्मृति का भाव प्रबल होता है।
दूसरों को वही देख सकता है, जिसे आत्म-दर्शन की अच्छाइयों का ज्ञान नहीं होता।
अनन्त दीपमालाएं भी वह आलोक नहीं दे सकती, जो आलोक आत्मलोचन और आत्म-निरीक्षण से मिलता
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