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अनुभव का उत्पल
स्रष्टा कौन ?
कोलाहल होता है, हम जग जाते हैं। शान्ति होती हैं, हम सो जाते हैं।
यह हमारी आरोप की भाषा है।
सच तो यह है हम जगते हैं तभी कोलाहल होता है और हम सोते हैं तभी शान्ति ।
कोलाहल और शान्ति हमारी ही परिधियां हैं।
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