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________________ अनुभव का उत्पल बड़े और छोटे कोई भी व्यक्ति मानसिक झुकाव से बच सकता है- यह सम्भव नहीं है । छोटों की चीखब- पुकार अपने होठों तक ही होती है, वह बड़ों के दिल नहीं पिघाल सकती । जीवन का सबसे बड़ा मंत्र है शक्ति । शक्तिधर ही सम्मान का जीवन जी सकता है। बड़ों के सामने दीन गाथाएं गाना तब तक बेकार है जब तक छोटों की शक्ति आगे न बढ़ जाए। इसलिए रोने की बात भूल जाओ। दीन बनने का नाम न लो। मन की व्यथा बड़ों के सामने मत रखो। वहां तुम्हारा कोई भला न होगा। उनके पास सुनने को कान होते हैं, विचारने को मस्तिष्क किन्तु सहानुभूति के लिए हृदय नहीं होता । व्यथा व्यथा को पकड़ सकती है। छोटे फिर भी तुम्हें सहानुभूति दे सकते हैं किन्तु वे कुछ कर नहीं सकते । करुणा रुला सकती है पर सबको नहीं । उत्तम बात यह है कि करुणा की वृत्ति बने ही नहीं । हीनता आए और मुँह पर झलक पड़े, यह मध्यम भाव है। वह मुंह से निकल पड़े, इससे अधिक अधम भाव और क्या होगा ? Jain Education International 90 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003138
Book TitleAnubhav ka Utpal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size5 MB
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