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________________ कल्पना की ऊर्मियाँ अभिनय करती हैं, मन अनन्त भविष्य को अपने बाहुपाश में जकड़ लेता है। 'बन्धन और मुक्ति एक क्रम है। भविष्य की पकड़ से मुक्ति पाने वाली पहली कली है 'कल' और दूसरी है 'परसों'। इस कुसुम की कलियाँ अनन्त हैं। जो खिलती हैं, वह 'आज' बन जाती हैं। सच्चाई वही है जो आज है। आज 'कल' बनता है, कार्य कृत बन जाता है, अनुभूतियाँ बची रहती जो चले वह वाहन नहीं होता। वाहन वह होता है, जो दूसरों को चलाये।, अनुभूति के वाहन पर जो चढ़ चलते हैं, उनका पथ प्रशस्त है। आज की धार पतली होती है, उसे वही पा सकता है जो सूक्ष्म बन जाये। कल की लम्बाई-चौडाई अमाप्य है। अनुभूतियों से बोध पाठ ले, वर्तमान को परखकर चले और कल्पनाओं को सुनहला रूप दिये चले वह विद्वान् है, वह पारखी है, और वह है होनहार। 'अनुभव का उत्पल' मेरे कुछेक गद्य-गीतों व लघु-निबन्धों का संकलन है। संकलन के लिए ये नहीं लिखे गये पर जो लिखा जाता है उसका संकलन हो जाता है। मनुष्य चिरकाल से संग्रह का प्रेमी है। वह बिखरे को बटोर लेता है और फूलों को माला बना देता है। -आचार्य महाप्रज्ञ
SR No.003138
Book TitleAnubhav ka Utpal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size5 MB
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