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अनुभव का उत्पल
कसौटी की कसौटी
मैं दूसरों को चार आना उसके शब्दों से पहचानता हूं। दस आना अपनी कल्पना से पहचानता हूं। एक आना जन मान्यता के आधार पर पहचानता हूं और मुश्किल से एक आना वह जैसे है, वैसे पहचानता हूं और कभी कभी वह भी नहीं। फिर मैं दूसरों के प्रति न्याय करने की कल्पना करूं, क्या यह मेरा मतिभ्रम नहीं है?
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