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________________ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान का अर्थ यहीं पर नाट्य रूप से नहीं है, काव्य रूप से ही है। इस तरह के नामान्त वाले चरित काव्यों से सम्बन्धित प्रसिद्ध कृतियां निम्न हैं१. विलास-राज विलास, भीम विलास, अभयविलास, रतन विलास, कालूयशो विलास २. प्रकाश---राजप्रकाश, सूरज प्रकाश, भीम प्रकाश, कीरत प्रकाश ३. रूपक ----राजरूपक, गोगादे रूपक, रावरिणमल रा रूपक, रतन रूपक ४. चरित - सदयवहम चरित, पद्मनी चरित, अवतार चरित, डालिम चरित, मगन चरित ५. प्रबन्ध-त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध, हरिपिंगल प्रबन्ध, दशकुमार प्रबन्ध । इन चरित काव्यों की परम्परा राजस्थानी में अपभ्रंश से उत्तराधिकार में मिली है, लेकिन अपभ्रंश से भी अधिक राजस्थानी में लोकप्रिय और समृद्ध हुई । विक्रम की तेरहवीं शताब्दी से जब राजस्थानी अपभ्रंश से अलग भाषा के रूप में विकसित हो रही थी और अपने प्रारंभिक काल में ही थी, तब से ही राजस्थानी में चरित काव्यों की परम्परा उपलब्ध होती है। राजस्थानी में सबसे पहला चरितकाव्य अचलगच्छ के महेन्द्रसिंहसूरि के शिष्य धर्महिंससूरि द्वारा रचित "जंबूसामिचरिय' है। इसका रचनाकाल वि.सं. १२६६ है । इसके बाद नागेन्द्र गच्छ के पासड़सूरि के शिष्य अभयदेवसूरि कृत "समरसिंह रास' चरितकाव्य का श्रेष्ठ निदर्शन है । इसका रचनाकाल वि.सं. १३७१ है । इसी तरह वि.सं. १४८४ में हीरानंदसूरि ने "विद्या विलास पवाडों' तथा वि.सं. १५१२ में पद्मनाम ने "कान्हड़दे प्रबंध' की रचना की । ये दोनों भी चर्चित काव्य हैं। इसके बाद तो चौपई, बेलि, संधि, कथा, आख्यान, झूलणा आदि संज्ञाओं से युक्त चरित काव्यों की एक लम्बी व विस्तृत परःपरा मिलती है। इन चरित काव्यों की परम्परा में एक बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है और वह यह कि राजस्थानी में चरितकाव्यों का प्रारंभ एक जैन संत धर्मसिंहसूरी द्वारा हुआ और बाद में जैन संतों द्वारा ही इसे आगे भी बढ़ाया गया । महापुरुषों के चरित्र के माध्यम से श्रावकों में चारित्रिक शुद्धि ब दृढ़ता को प्रेरित व प्रोत्साहन करने के इस तरह के प्रयास जैन धर्म में प्राचीन परम्परा रही है । तेरापंथ में राजस्थानी चरित काव्य-परम्परा तेरापंथ धर्मसंघ भी ऐसे चरित-काव्यों के निर्माण में पीछे नहीं रहा । आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ की स्थापना के साथ ही राजस्थानी चरित काव्यों के सृजन की नींव डाल दी थी, उनकी बीज-वपन की इस परम्परा को मुनि श्री हेमराजजी, बेणीदासजी जैसे संतों ने आगे बढ़ाया एवं जयाचार्य ने इसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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