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________________ २१० तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान समंजन जहाँ बुनावट को आकर्षक बनाता है वहीं जीवन दर्शन ( जो जैन दर्शन की अहिंसा और सत्य अवधारणा से अनुस्यूत है ) पारदर्शी रूप में प्रस्तुत होता है | अहिंसा की अवधारणा की सहज अन्विति और अभिव्यक्ति की एक बानगी द्रष्टव्य है जिसमें धर्म रुचि का गिरी हुई बूंदों को चख लेने से मृत्यु को प्राप्त होती चींटियों को देखकर स्वयं समस्त शाक को खा लेने और स्वयं मृत्यु का वरण कर अन्य प्राणियों की रक्षा का शिव प्रयास चित्रित किया है । भाव और भाषा का संगम देखते ही बनता है 'तू और आहार पाणी पारणो कीजे, ओ तूं थड़ो परठ ले एकत जाय र गुरु नो वचन सुणे परठण चाल्यो, थउ ले जाय परठयो एक बूंद मात । तिहां कीड्या आई चींगट परसंगे, त्या हजारां गमे हुई कीड़या री घाट । एक बूंद परठ्या इतली कीड्यां मूई, कीधो आहार I' जोड़कर ( धर्मरुचि का अगले जन्म में सुकुमा ते सगलो परठ्या हुवे अंतत संधार । तो मोने श्रेय निरजरा धर्म हेतें मंगलाई तू बा रो करणो आहार । आप मरता जीव जाणे नें, कड़वा तू बा रो रचनाकार ने कार्य और परिणाम को साथ मरकर स्वर्ग प्राप्त करना और नागश्री का दुःखद अंत लिका के रूप में तपस्या और देवलोक प्राप्ति, पुनः दूसरे जन्म में द्रोपदी के रूप में तपस्या और देवलोक प्राप्ति) नैतिक मानदण्डों और आदर्शों की पुनस्थापना का सारस्वत कार्य किया है । यह प्रस्थापना रचना को प्रासंगिक स्वरूप प्रदान करने की दिशा में एक प्रबल बिन्दु है । आज जब सर्वत्र आराजक, आतंककारी हिंसावादी प्रवृत्तियाँ क्रियाशील हैं, सामाजिक मूल्यों में पतन हो रहा है सांस्कृतिक धारा पर चोट की जा रही है, कवि की प्रस्थापनाएँ महत्वपूर्ण हैं । यही कृति को पठनीय बनाता है और महत् उद्देश्य के जीवनांतरण की प्रेरणा देता है । Jain Education International जम्बूकुमार चरित समीक्ष्य कृति का केन्द्र सुधर्मा स्वामी के शिष्य जम्बूकुमार का जीवन चरित है । 'जम्बू पइन्ना' से चयनित 'जम्बूकुमार चरित' की कथा ने ४६ ४६ ढालों में काव्यात्मक विस्तार पाया है। इसकी बनावट से यह उद्घाटित होता है कि इस खण्डकाव्य में निश्चित विचार दर्शन की प्रतिष्ठा का स्पष्ट और सारस्वत प्रयास हुआ है । यह प्रयास दो प्रकार से हुआ है— प्रथम जीवन के शाश्वत मूल्यों की श्रेष्ठता प्रतिपादित करके तथा द्वितीय भौतिकवादी दृष्टि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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