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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
कियां विसराऊ म्हारां हिवड़े रा हार नेहड़ता री री क्यारी रो म्हारी रोके आधार रे
सूम्यो सो तो जो हकलोतो सूनो सो संसार ।
इस प्रकार घटनाओं के माध्यम से पात्रों की चरित्र विशेषताओं का उद्घाटन जहाँ नाटकीयता उत्पन्न करता है वहीं कवि की क्षमता भी उद्भासित होती है।
कालयशोविलास नवीन शिल्प वैभव के साथ रचनाकार की जीवन दृष्टि को सहज और आत्मीय प्रस्तुति देती है । अपनी अनुभूतियों को व्यंजित करने हेतु रचनाकार ने राजस्थानी भाषा को अपनाया है। मुहावरेदार आलंकारिक प्रयोग कथ्य को सम्प्रेषणीय बनाता हैदया दान रे नावें चाले सोषण धर्म सदान में,
मारग मिथ्या मरम रो चींटया रै बिल चून, चूसै खून मानवता रो रे
___ जड़ता मारी जगत में । एरण चोरी, सूई दान, अड़ीके स्वर्ग किनारो रे
देखो भगती भगत रे में । लोकोत्तर लौकिक धरमां ने एक ही रूप पिछा? रे
ताणे खींचाताण स्यू घी तम्बाकू मेल मिलावै मैली अकल अडाण रे
मूरख अपनी बाण स्यू। युगबोध की इतनी सहज अभिव्यक्ति भाषा सामर्थ्य का तो उदाहरण है, साथ ही रचना उद्देश्य की महाकाव्योचित गरिमा का संस्पर्श भी इसमें द्रष्टव्य है। संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दावली ने जहाँ अर्थ गांभीर्य उत्पन्न किया है वहीं तद्भव और देशज शब्दावली रचना को सम्प्रेषणीय बनाती है। सर्गान्त छंद वैविध्य रचना शिल्प वैशिष्ट्य के साथ परम्परागत लक्षणों की पूर्ति का भी प्रमाण बना है।
राजस्थानी की परागंध से सुवासित प्रकृति चित्र समीक्ष्य कृति की अन्यान्य विशेषता है . राजस्थान की भीषण और दारुण गर्मी का यह चित्र दर्शनीय है
'ज्येष्ठ महीनों ओ ऋतु गर्मीनो मध्यम सोनो हो हिवै हठीनों लू हर माला हो अति विकराली भू मई भट्टी हो तरणी तोय
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