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तेरापंथ का राजस्थानी गद्य-साहित्य
के रूप में उनका एक विधिवत संकलन कर दिया था । सब साधु-साध्वियां उनका प्रतिदिन वाचन करते थे। उनकी संख्या २७ है। टहूको---
मर्यादाओं, हाजरियों के इस वाचन क्रम में समय-समय पर परिवर्तन होते रहे हैं । कभी इनका दैनिक वाचन होता था तो कभी सप्ताह में दो बार एक बार तथा पाक्षिक वाचन भी होता रहा है । जब इसका दैनिक वाचन आवश्यक था तो इसे आहार करते समय भी. पढ़ा जाता था। उस समय इसका नाम टहूका था । टहका का अर्थ है कोयल का कूजन । एक संत टहूका का वाचन करता तथा शेष सभी संत आहार करते-करते इसे सुनते जाते थे। समय और संगठन का यह एक अद्भुत प्रयोग था । उत्तराधिकारपत्र---
तेरापंथ की परम्परा में वर्तमान आचार्य ही अपने भावी उत्तराधिकारी का चयन करता है। चयन की इस प्रक्रिया में उत्तराधिकार-पत्र का लेखन भी एक अनिवार्य परम्परा है । सभी आचार्यों ने अपने उत्तराधिकारी का नियुक्ति पत्र लिखा है। बख्शीस-पत्र
___इसके अतिरिक्त आचार्य साधु-साध्वियों को बख्शीस, पत्र भी देते थे। ऐसे बख्शीस पत्रों का एक बहुत बड़ा संग्रह हो सकता है। संदेश-पत्र
आचार्य समय-समय पर अपने शिष्यों को व्यक्तिगत पत्र, संदेश पत्र भी लिखते रहे हैं। उनका भी एक बड़ा संकलन भण्डार में संग्रहीत है।
__ आचार्यश्री तुलसी ने मुनिश्री मगनलालजी को एक खास रुक्का भी प्रदान किया था जो तेरापंथ इतिहास की एक विरल घटना है । तत्त्वबोध
सैद्धान्तिक स्पष्टताओं के लिए आचार्यों तथा संतजनों ने समय-समय पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं । खंडन-मंडन की विधा में उन्हें उत्कृष्ट कोटि के तात्विक ग्रन्थ कहा जा सकता है। उनकी सूची इस प्रकार है
१ भ्रम विध्वंसन २ संदेह विषौषधि ३ जिनाज्ञा मुख मंडन ४ कुमति विहंडन
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