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तेरापंथ के प्रमुख राजस्थानी कवि
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आचार्य भिक्षु के काव्य में तत्त्व निरूपण जिस सरस शैली के साथ प्रस्तुत हुआ है वह दुर्लभ है। अनेक ऐसे नवीन उपमान प्रयुक्त किए हैं जो समूचे साहित्य में अपनी मौलिकता लिए हुए हैं। उदाहरण के तौर पर हम देख सकते हैं
सांभर केरा सींग में, सींग सींग में सींग ज्यं मिश्र परूपे त्यांरी बात में धींग धींग में धींग । बाजर खेत बावे जरे बूट बंट में बूट ज्यूं मिश्र परूपे त्यांरी बात में झूठ झूठ में झूठ । चोर मिले उजाड़ में करे झपट झपट में झपट
ज्यू मिश्र परूपे त्यांरी बात में कपट कपट में कपट ।
अर्थात् --सांभर के एक सींग में से दूसरा उसमें से तीसरा इस प्रकार एक-एक से अनेक सींग निकले रहते हैं। जो पुण्य-पाप की मिश्र प्ररूपणा करते हैं उनकी बात में एक भी दुराग्रह नहीं होता । उत्तरोत्तर निकलते अनेक दुराग्रह उसके साथ होते हैं। जब बाजरो का खेत बोया जाता है तब प्रत्येक पौधे की एक शाखा में से दूसरी उसमें से तीसरी और इस प्रकार अनेक शाखाएं निकलती जाती हैं । उसी प्रकार मिश्र प्ररूपणा वाले के एक झूठ में से दूसरा झूठ उसमें से तीसरा इसी तरह अनेक झूठ प्रस्तुत होते रहते हैं। घने जंगल में चोर मिल जाते हैं उनका हर झपट्टा उत्तरवर्ती झपट्टों से युक्त रहता है । इसी प्रकार जो मिश्र प्ररूपणा करते हैं उनकी बात में मानों कपट की एक शृंखला सी जुड़ी रहती है।
तत्त्व निरूपण के साथ-साथ आचार्य भिक्षु ने अनेक आख्यानों की रचना की है। उनमें वर्णित चरित्रों के माध्यम से उन्होंने कुसती नारी के लिए जहाँ 'स्त्री अन रथ मूल' 'नारी कूट कपट नी कोथली' जैसे शब्दों का प्रयोग किया है वहां 'सती सोलह गुण की खान' और सीता सदृश बताकर उसके प्रति आदरपूर्ण शब्दों का भी प्रयोग किया है। आचार्य भिक्षु की लेखनी ने नारी के चरित्र को जिस पराकाष्ठा पर पहुँचाया है एक कुशल कवि ही उसमें समर्थ हो सकता है । भरत नहीं लेवण देवे दीक्षा ब्राह्मी शील तणी मांडी रक्षा ।
रूप देखी भरत रै वंछा आई ।। सती बेले बेले पारणो कीनो एक लूखा अन पाणी में लीनो।
फूल ज्यू काया पड़ी कुमलाई ।। भरत री विषय सूं जाणी ममता तिण सूब्राह्मी झाली तपसा ।
साठ हजार वर्ष री गिणती आई ।
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