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तेरापंथी राजस्थानी साहित्य की रूप-परम्परा
[] डॉ० परमेश्वर सोलंकी
बार कोसां बोली पलटे, वनफल पलटे पाकां ।
बरस छत्तीसा जोवन पलटे, लखण न पलटे लाखां ॥ कहावत सांव सांची, पिंण साहित्य की रूप-परंपरा भासा र लखण ज्यूं दर्शाव देव । विक्रम संवत् १००० सू सईका १६०० तांई रा सिलालेखां एक अध्ययन म्हांने आ बात समझ पड़ी । सं० १०१५ री हद्दां - देवळ, सं० ११०३ को नोहर -लेख अर सं० १२१० को खेड़-बालोतरा को वालिग सासण लिख्यो-पढीजै के– “जतंग अषवत मकतः पवए"; "अमनाथ आधेस पथर के चौकए: गुमठे चढई : "; "खेड़ि जु राणो होई सु जुको वालिगुलेई कुहाडुलेई ताकि केरिय गदह चढई : " - अ तीन ओल्या आजपिंण कमोबेस ज्यू रीत्यू बोली जै ।
कागज पै लिखिया ग्रन्थां मांय राजा भोज र सभाकवि धनपाल रो 'सच्चउरिय महावीर'; जैसलमेर भण्डार मं मिलियो भरतेश्वर बाहुबली घोर'; 'जिनपतिसूरि बधावणो'; विजयसेन सूरि को 'आबूरास' अन 'रेंवतगिरि रास'; 'शालिभद्र रास - राजतिलक रो अर विजयचंद सूरि रो 'बारह व्रत रास पिंण सं० १३३८ सू पैलीरा लिख्या मिले जिण री भासारो रूप कमोबेस एक सरीसो लखावै । पिंण जिका ग्रंथ राजा री आज्ञा सू लिखिज्या; जिका सिलालेख राजा रं कहवर्ण सूं उकीरिज्या उणरो भासा रूप संस्कृत री चाल ढाल रो दर्शाव देवै जीयां म्है दमोह - मध्यप्रदेश मं मिलियो एक सिलालेख संपादन करियो । तेरहवीं सदी रं उणलेख री दो एक पंक्ति इण मुजिब पढी - "बघडगरूं जू विट्ठणो सुहकरण वरणंत"; वघडपटिपरिठिनउ खतिउ विजयपालु जेणे काइउ रणि विजिणिउ तहसुतु भुवणपालु'; "चाइसूरो सुभटो सेलखनकञ कुशलो गुहिलोतो सव्वगुणो " - इत्याद ।
आज री संगोष्ठी रो विषै- 'तेरापंथ रो राजस्थानी नै अवदान' इण दीठ धुंधलो-धुंधलो दर्शाव देवं । भासा रो रूप-विकास मधरो घणो होवे अर सदियां ₹ अंतराल सू' दीख पड़े, जद के तेरापंथ रो आखो साहित्य दो सदियां मांय हीज लिख्यो रच्यो गयो ह; पिंण म्हांर्ने आपरो आदेश पालणो जरूरी । फेरूं लारल अंग्रेजी महिने री २३ तारीखने जद म्हे आचार्यश्री ने 'तुलसी प्रज्ञा' रो नूं वो अंक भेंट करणे पूग्यो तो उण वेला कृपा करने आप म्हे ने 'तेरापंथ - प्रबोध' नाम सू छपियो एक चौपन्नियो दियो अर फरमायो
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