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________________ आचार्य भिक्षु की साहित्य साधना १२७ बड़े विचारक और प्रयोक्ता थे । उनके चिन्तन में अनेक बहुमूल्य स्थाई तत्त्व थे । 1 यह कृति १२ ढालों का संग्रह है जिसमें ५४ दोहे हैं । गाथाओं की संख्या ४८७ है | प्रारम्भिक आठ ढालों की रचना का सम्वत् नहीं मिलता। अवशेष ढालों के अन्त में निम्न जानकारी मिलती है :-- ढाल ९ १० ११ १२ सम्वत् १८४४ १८५२ फाल्गुन सुदी ९ रविवार आषाढ़ बदी ११ मंगलवार १८५४ आषाढ़ बदी ११ मंगलवार १८५३ कार्तिक बदी १४ गुरुवार पुर उपर्युक्त रचना - वर्णन से लगता है— कुछ ढालें मूल कृति के साथ बाद में जुड़ी हैं । वर्तमान में इस कृति का साधुवाद सटिप्पण संस्करण स्वतंत्र रूप में प्रकाशित है । १६. विरत - अविरत की चौपाई भगवान महावीर के बाद जैन धर्म दो भागों में विभक्त हो गयाश्वेताम्बर और दिगम्बर । इनमें भी विभिन्न मत अपने-अपने अभिनिवेशों के साथ भिन्न-भिन्न परम्परा से जुड़ गए । शहर बगड़ी मांढा मांढा उन्हीं में एक परम्परा से सम्बन्धित मत एक ही क्रिया में धर्म और अधर्म दोनों को स्वीकारता था । प्रस्तुत कृति में इस आधारहीन मान्यता का खंडन किया है। साथ ही सैद्धान्तिक पक्ष को समग्रता से प्रस्तुति दी है । व्रत और अव्रत दोनों का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है । इस परिप्रेक्ष्य में साधु श्रावक व्रत की अपेक्षा से एक हैं । इसे स्पष्ट करते हुए आचार्य भिक्षु ने कहा : Jain Education International साध नै श्रावक रतनां री माला एक मोटी दूजी नांन्ही रे | गुण गूंथ्यां च्यारूं तीरथ रा इविरत रह गई कोनी रे || अत की अपेक्षा से श्रावक साधु से भिन्न हैं । इस अपेक्षा से श्रावक का खाना पीना अव्रत में है। इस प्रसंग को आचार्य भिक्षु ने अनेक आगमों की साक्षियाँ तथा शास्त्रीय दृष्टांत देकर स्पष्ट किया है । दान के विषय में सावद्य - निरवद्य की अलग-अलग व्याख्या कर भ्रांत धारणाओं को तोड़ने का सफल प्रयत्न किया है । इस प्रकार यह कृति अनेक मिथ्याभिनिवेशों को दूर कर अनेक विषयों में सम्यग्दृष्टि देती है । गाथाएं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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