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________________ २६६ कालूयशोविलास : विविध संगीतों का संगम • हो गुरु-गुण गेहरा ! "तुलसी" "तुलसी" नाम जो, कुण बतलासी किण स्यूं करस्यूं मंत्रणा रे लोय । हो म्हारा शिर सेहरा ! ओ गुरुतर गणधाम जो, किण विध होसी नव निर्माण, नियंत्रणां रे लोय ॥" उ० ६, ढा० १३, गा० १८,१९,३२ __ कालूयशोविलास को गन्ने की उपमा दी जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी। गन्ने को जहां कहीं से चूसो मधुर ही लगेगा। वही स्थिति इसकी है। छठे उल्लास को तो इसका हृदय कहा जा सकता है। मुझे कठिनाई अनुभव हो रही है कि मैं इस छोटे से निबंध में किस प्रसंग को लू और किसको छोडूं। अंत में इस महाकाव्य में प्रयुक्त देशियों की सूची ही प्रस्तुत कर रहा हूँ। मेरा संगीत-प्रेमी पाठकों से निवेदन है कि वे अगर इनका पूरा रसास्वादन करना चाहते हैं तो एक बार आचार्यश्री के कण्ठों से इन्हें अवश्य सुनें। प्रयुक्त राग का आदि पद कालूयशोविलास पृष्ठ १. आई थी पडोसण कह गई बात २. आज आनंदा रे ३. आज म्हारै स्वामीजी रो(तेजो) ४. आदिनाघ मेरे आंगण आया १०२ ५. आवत मेरी गलियन में गिरधारी ६. इक्षु रस हेतो रे ज्यांरा पाका खेतो रे ७. उभय मेष तिहां आहुड़िया ८. ऐसो जादुपति ९. ओल्यू ३४२ १०. कर्मण की रेखा न्यारी २९९ ११. कांय न मांगा काय न मांगा १२. काली काली काजलिय री रेखजी १३. कुंवर! थांस्यू मन लागों १४. कुंथु जिनवर रे ३२७ १५. केसर वरणो हो काढ़ कुसुम्भो १६. कोरो कलशो जल भरयो कांइ धरती शोष्यां जाय १७. खम्मा खम्मा खम्मा हो कुंवर अजमाल रा १८. खिम्यावंत जोय भगवंत रो जी ज्ञान ३१८ १९. खोटो लालचियो (दुलजी छोटो सो) १७२ २०. गहिरो जी फूल गुलाब से २३४ २२४ ९५ ११ २६३ १९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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