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कालूयशोविलास : विविध संगीतों का संगम
आप साहित्यकार के साथ-साथ एक उच्चस्तरीय आपको यह कला प्रकृति से विरासत में मिली है । अवस्था में श्रद्धेय कालूगणी के चरणों में दीक्षित बड़ा सुमधुर था । सामूहिक गायन में आपका स्वर था । इसलिए लोग आपको "बांसुरी महाराज" इस लगे थे । प्रारंभ से ही आपके हृदय में हर कला को हस्तगत करने की धुन रहती थी । अतः इस कला के लिए आपको कोई अतिरिक्त अभ्यास नहीं करना पड़ा था । श्रद्धेय कालूगणी को सुन-सुन कर आप इस विषय में निष्णात हो गए थे ।
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संगीतज्ञ भी हैं ।
आप मात्र ग्यारह वर्ष की हो गए थे । आपका कंठ स्वतंत्र रूप से सुनाई देता विशेषण से उपमित करने
एक बार की घटना है— पूज्य कालूगणी ने गायक संतों को संबोधित कर कहा – “असवारी" की राग सुनाओ। जिसका आदि पद है - राणाजी थांरी देखण धो असवारी । संघ के तत्कालीन प्रमुख गायक संत मुनि कुन्दन - मलजी, मुनि चौथमलजी, मुनि सोहनलालजी, चूरू आदि ने इस पद्य को गाकर सुनाया, पर कालूगणी की परीक्षा में वे उत्तीर्ण नहीं हो सके : पूज्य प्रवर ने मुनि तुलसी को संकेत किया तो आपने गुरुदेव के श्रीमुख से कुछ दिन पूर्व ही सुनी उस राग को ज्यों की त्यों सुनाकर "यह ठीक गाता है" यह प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लिया ।
श्रीमज्जाचार्य द्वारा रचित भगवती की जोड़ की ५०० ढालें, वे रागें अगर कहीं सुरक्षित हैं तो आपके ही कंठ में । इसके अतिरिक्त चंद, रामचरित्र आदि पचासों प्राचीन व्याख्यानों की तथा स्वामीजी की रचनाओं की रागों के आप अधिकृत गायक हैं। इस प्रकार आपने अनेक रागों को आत्मस्थ कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है ।
कालू यशोविलास में आपने उनमें से चुनी हुई रागों का खुलकर प्रयोग किया है । इस महाकाव्य के छह खंड हैं । जिन्हें उल्लास के रूप में प्रस्तुति दी गई है । प्रत्येक उल्लास में १६-१६ ढालें हैं और बीच-बीच में प्रसंगोपात्त पचासों अंतर ढालें हैं । अंत में ५ शिखाएं रखी गई हैं । इस प्रकार इस ग्रन्थ में १०१ मूल ढालें तथा ५५ अन्तर ढालें हैं । कुछ रागों का एकाधिकबार भी प्रयोग हुआ है । अतः कुल मिलाकर इसमें लगभग ११३ रागें (देशियां ) उपलब्ध हैं । उनमें शास्त्रीय संगीत को भी उचित स्थान मिला है ।
आचार्यवर की एक विशेषता है कि जहाँ कहीं भी थोड़ी सी रडकन दिखलाई देती है, उसे तत्काल मिटाने का प्रयास करते हैं । यही कारण है कि आपकी हर कृति परिमार्जन की इस कसौटी से गुजरती हुई पाठकों तक पहुँचते-पहुँचते स्वर्ण की तरह निखर उठती है । कालूयशोविलास भी इसका अपवाद नहीं है । पुनर्निरीक्षण के अवसर पर आपने अनेक स्थलों को आमूल
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