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कमजोर बनाया जा सकता है। और जब कारण कमजोर होंगे तो हिंसा तो स्वयं कम होगी, उसका विस्तार रुकेगा। अहिंसा की सामाजिक प्रतिष्ठा हो
प्रकारान्तर से हम कहें तो इच्छाओं का संयम, सांप्रदायिक अनाग्रह आदि को बढ़ावा देना अहिंसा की प्रतिष्ठा करना है । अहिंसा की प्रतिष्ठा का यह स्रोत व्यक्ति से आगे बढ़ता-बढ़ता समाज तक व्याप जाए तो जन-जीवन में शांति का सागर उमड़ पड़े। अणुव्रत आन्दोलन के अन्तर्गत अहिंसा के विविधमुखी-विकास और प्रतिष्ठा के लिए जो छोटे-छोटे नियम हैं, वे व्यक्ति के स्तर पर तो उपयोगी हैं ही, सामाजिक स्तर पर भी अत्यंत उपयोगी एवं व्यवहार्य हैं । मैं मनता हूं, उस दिशा में सलक्ष्य प्रयत्न किया जाए तो स्वस्थ समाज की परिकल्पना को मूर्त रूप मिल सकता है। क्या कार्यकर्ता अपनी शक्ति का नियोजन इस प्रयास में करेंगे ?
कानपुर ४ अगस्त १९५८
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महके अब मानव-मन
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