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________________ (७९) हो जहां मद्यपादि अनेक नीचजनोंकी वस्तीहो ऐसे स्थलमें जिनमंदिर नहीं बन्धाना । क्या इससे अच्छे उत्तम जनोंकी वस्तीमें बन्धवाना सिद्ध नहीं हुवा १ देखिए, बेचरदास कैसा मूर्ख आदमी है कि ऐसे २ प्रभावक आचार्य महारानों के सिद्धान्तानुसार दिये हुए पाठोंको वगैर देखे बकदिया कि-पहले सब मंदिर जंगलोंमेंही थे । तटस्थ-आपने हरिभद्रसूरि महाराज जैसे बड़े प्रभावक आचार्यों के प्रमाणसे शहरमें निनमंदिर बनानेका विधिवाद साचित किया, परन्तु क्या किसी सूत्रमें भी ऐसा वर्णन है कि जिससे शहरमें जिनमंदिरका होना सिद्ध हो ! समालोचकहां ! देखिए ज्ञाताजीके सोलहवें अध्ययनमें द्रौपदीजीके अधिकारमें इस विषयका पाठ मैं प्रथम देचुका हूं. 'तएणं सा दोवइ ' इत्यादि) द्रौपदीने शहरकेही जिनमंदिरमें प्रभु प्रतिमाकी पूजाकी है । इससे साबित हैकि प्रभु नेमिनाथके वक्तमेंभी गाममें मंदिर थे । और देखिए श्रीउववाइयसूत्र में लिखा है कि " चंपानयरीए xxxx बहुला भरिहंतचेइयाई" मतलव-चंपानगरीमें भगवान्के बहुत मन्दिर हैं । इस पाठसे शहरमें जिनमंदिर होनेका रिवाज प्राचीन है आधुनिक नहीं। फिर आवश्यकसूत्र की टीका सामायिकाध्ययनमें " अंतेउरचेइयहरं कारियं पभावइए नहाता तिसंझं अच्चेइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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