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________________ (७४) " चेइयदव्वविणासे, रिसिघाए पवयणस्स उड्डाहे । संजइचउत्थ ( वय ) भंगे, मूलगी बोहिलाभस्स" भावार्थ-चैत्यद्रव्यके विनाशसे ( यानी चैत्य सिवायके दूसरे. काममें लगाना यह भी इसका विनाश कहा जाता है) और प्रवचनके उड्डाहसे और साध्वीके चतुर्थ व्रतके भङ्ग करनेसे बोधिबीज ( सम्यक्त्व ) का नाश होता है. इसलिये ऐसे अधर्मी असत्यवक्ताके भाषणपर विश्वास रखकर भूल चूकसे भी देवद्रव्यको अन्यकार्य में लगानेका इरादा मत करना. क्योंकि आगमोंमें भी देवद्रव्यको स्वीकार किया है। तटस्थ-आप फिकर मत कीजिए, बेचरदास और उसके नास्तिक अनुयायियों का मनोरथ सफल नहीं हो सकता । क्यों कि देवद्रव्यका रक्षकवर्ग सब आस्तिक है इसलिये बेचरदासके कथन. से सिवाय उसकी दुर्दशाके और कुछ फल नहीं निकल सकता । मुझे इसके वर्तनपर दया आती है कि-बिचारेकी तंदुलियेमच्छ . जैसी दशा हुई है । क्योंकि न तो देवद्रव्य इसके हाथम आया और नाहकमें उत्सूत्रमयप्रवृत्तिसे पूर्ण अधोगतिका पाप बांध लिया, अस्तु, इसके कर्म ही ऐसे होंगे, हम क्या कर सकते हैं । कृपया भागेका वर्णन सुनाइए । समालोचक-'हुं तेथी' ऐसे शब्दोंसे लेकर- छाती ठोकीने Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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