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________________ (५७) समालोचक-बेचरदासके उपरके कथनका खण्डन प्रथमके कथनके खण्डनमें अनेक आगमोंके पञ्चाङ्गी प्रमाणसे किया गया है यानी मूलपाठसे भी देवद्रव्यको सिद्ध किया है उससे तथा वीतरागप्रमुके साथ द्रव्यके संबन्धका जो समाधान किया है उससे अच्छी तरहसे हो चुका है. तटस्थ हां जी ! हां साधारण खण्डन नहीं किया किन्तु खण्डशः खण्डन हो चुका है । और आपने अच्छी तरह साबित कर दिया है कि बेचरदासने शास्त्रोंका अध्ययन ही नहीं किया । अगर किया होता तो आपने इतने प्रमाण दिये उनमें से एक भी इसके देखने में नहीं आया क्या ऐसा बन सकता है ? इससे हम अच्छी तरह से जान गये हैं कि वेचरदासने आगम बागम कुछ भी नहीं देख मात्र आगमके नामसे लोगोंको भ्रमणामें डालता है. मैं द्वेष भावसे ऐसा नहीं कहता किन्तु " वीतराग प्रभुका द्रव्य नहीं हो सकता इस लिये मेरेको आगम पढ़नेकी निज्ञासा हुई इत्यादि " कथन से ही उसका मृषावादीपणा और देवद्रव्यकी साथ द्वेषपरायणताका मुझे भान हुवा है इससे कहता हूं, क्यों कि अगर वह भला मनुष्य होता तो शास्त्रवचनसे विरुद्ध होकर सूत्रका अध्ययनही नहीं करता अगर भूलसे कभी कर लिया होता तो सूत्रों के पठनका हेतु यह बताता कि-सूत्र में कैसी कैसी वैराग्यकी बातें आती है, भगवान्का कैसा अगाध ज्ञान है । 'सवी जीव करूं शासन रसी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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