________________
(५६) " चेइयाणं वा तद्दव्वविणासे वा संजईकारणे वा अनंमि वा कमिय कजे रायाहीणे सो य राया तं कजं न करेइ सयं वुग्गाहिओ वा तस्साउंटणनिमित्तं दगतीरे आयाविज्जा तं च दगतीरं तस्स रण्णो ओलोयणे ठियं" ।
भावार्थ- चैत्यका या चैत्यद्रव्य-देवद्रव्यका विनास होता तथा साध्वीपर बलात्कार होता हो अथवा और कोई राज्याधीन कार्य हो उस कार्यको राजा व्युद्ग्राहित (किसीका भरमाया हुआ) या स्वयं न करता होवे तो उसको वश करनेके लिये जलाश्रयकी पास जाकर साधु आतापना करे और वह जलाश्रय राजाकी नजरमें हो । इत्यादि पाठ अन्य आगमोंमें भी हैं. अगर उन सब पाठोंका यहां पर उल्लेख करें तो एक बड़ी भारी पुस्तक बनजाय. परन्तु अवकाशके अभावसें और अकलमंदको इशारा ही काफी है इस ख्यालसे नहीं लिखे जाते ।
तटस्थ-महाराज ! अब देवद्रव्यको सिद्ध करनेके लिये पाठोंकी जरूरत नहीं है क्यों कि आपने पाठोंके सुनानेमें कुछ कसर नहीं रक्खी है. अब आगेका खण्डन कीजिये । वेचरदास-' आ कारणथी मने जिज्ञासा उत्पन्न थई अने मूल जैन आगमोंमां आ देवद्रव्य शब्द छे के केम ते तपासवानो मैं निश्चय कर्यो जैनशास्त्रो ( मूल ) नी बारीक तपास पछी मने जणायु के आ देवद्रव्यशब्दनो प्रयोग मूठमां कोईज ठेकाणे नथी'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org