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मानलिया होगा कि-दुनिया सारी मूर्खहै मैं ही अक्लमंद हूं। परन्तु उसका यह मानना उसकीही मूर्खताको सिद्ध करता है। बेचरदासके देवद्रव्यसे विरुद्ध दिये हुए भाषणने व्यवहारभाष्यके इस पाठको सार्थक किया है । यानि चैत्यप्रत्यनीक, यतिप्रत्यनीक और लोकनिन्द्य यह तीनो टाइटल आगमसिद्ध देवद्रव्यके निषेध करनेसे वेचरदासने प्राप्त किये हैं, देखिये मात्र देवद्रव्यके निषेध करनेसे वेचरदासको आस्तिक लोकोंकी तरफसे तीन टाइटल मिले अगर कोई जैनमुनि या कोई जैनश्रावक उस देवद्रव्यको खाजाय तो उसकी क्या दशा हो वह इसी दृष्टांतसे पाठकजन स्वयं विचार करलें ।
तटस्थ-आप के दिये हुए भत्तपइन्ना प्रकरणके मूल पाठके प्रमाणसे तथा व्यवहारवृत्ति और पूर्वधर जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण कृत व्यवहारभाष्यके प्रमाणसे तथा रायपसेणीमूत्रके मूलपाट के प्रमाणसे मुझे यह पूर्ण निश्चय होगयाहै कि देवद्रव्य सिद्धान्तसम्मत द्रव्य है । और गप्पी वेचरदासका यह कहनाकि ' मूल आगाम देवद्रव्य नहीं है '. केवल कपोलकल्पित है । इस लिये आपके दिये हुवे इतने पाठोंसे मेरी तो तसल्ली ( दृढता) हो गई है। परन्तु कितनेक ऐसे हठी होते हैं कि एक तरफसे समाधान मिलने पर दूसरी तरफ दौड़ जाते हैं । जब पैंतालीस आगमोंमेंसे उपाङ्गपयन्नाआदिका प्रमाण दिया जाता है तब कहदेते हैं कि ' हम ग्यारह अङ्गको मानते हैं ' जब अङ्गका प्रमाण देते हैं तब उपाङ्गमें
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