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________________ (86) प्रभुको स्नान कराया, बादमें गोशीर्षचन्दनसे गात्र विलेपन किया, प्रभुप्रतिमापर दिव्यवस्त्र स्थापन किए, पुष्प चढ़ाये. मालाएं चढ़ाई, सुगंधारोहण चूर्णारोहण और वस्त्रारोहण किया (वस्त्र चढ़ाए ) आभरणारोहण किया ( गहने चढ़ाये ) इत्यादि बहुत विस्तार से सूर्याभदेवताने पूजा की। और पूजाके बाद चांदी के अक्षत से अष्टमंगल आलेखे हैं । अब पाठकवर्ग विचार करेंकि प्रभुको चढ़ाये हुए गहने और चांदी के अक्षतसे किये हुए अष्टमंगल, यह देवद्रव्य हुआ कि नहीं ? अवश्य मानना पड़ेगा कि हां, बेशक यह देवद्रव्य कहा जायगा । इसी तरह श्रीव्यवहारभाष्य में लिखा है कि 66 44 1 चेइयदव्वं विभयाकरेज्ज केई नरा सयठाए । समणं वा सोवहियं, वज्जा संजयट्ठाए ? " व्याख्या - चैत्यद्रव्यं चौराः समुदायेनाऽपहृत्य तन्मध्ये कश्चिन्नर आत्मीयेन भागेन स्वयमात्मनोऽर्थाय मोदकादि कुर्यात् । कृत्वा च संयतानां दद्यात् । यो वा संयतार्थाय श्रमणं सोपधिकं विक्रीणीयात्, विक्रीत्य च तत् प्रासुकं संयतादिभ्यो दद्यात् । 1 एयारिसम्म दव्वे, समणाणं किं नु कप्पई घेत्तुं । चेइयदव्वेण कथं, मुल्लेण वि जेसु विहियाणं ॥ तेण पढिच्छा लोए, विगरहियावित्तरे किमंग पुण । चेइयजइपडिणीए, जो गिन्हइ सो वि हु तहेव ।। " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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