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बतलाइए ऐसा हठी आदमी कैसे सुधर सकता है । इस लिये इसके सुधरने के ख़यालको हृदयसे दूर कीजिये ! और अन्य ग्रन्थों के पाठों को सुन लीजिये । देखिये वेही देवेन्द्रसूरि महाराज श्राद्धदिनकृत्य में लिखते हैं कि---
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"चेइयदव्वं साहारणं च जो दुइ मोहियमईओ । धम्मं च सो न जाणइ, अहवा बद्धाउओ नरए || १२५ ||
अर्थ -- जो मोहमोहित मनुष्य चैत्यद्रव्य ( देवद्रव्य ) और साधारण द्रव्यका नाश करता है वह धर्मको जानताही नहीं या बद्धनरकायु है || १२५ || श्रीरत्नशेखरसूरिकृतश्राद्धविधिर्मभी प्राचीनपुरूषोंकी ऐसी गाथाएं बहुत आती है जिनसे देवद्रव्यकी सिद्धि अच्छी तरहसे होती है, जैसे कि
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चेइयदव्वविणासे, तद्दव्वविणासणे दुविहए | साहु उविक्खमाणो अनंतसंसारिओ होइ (भणिओ) १६६ "
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भावार्थ - चैत्यद्रव्य - सुवर्ण चांदी आदि जो मंदिरका द्रव्य है उसके, विनाशको देखकर और ' तद्दव्वविणासणे दुविहभेए यानि चैत्यद्रव्यसे प्राप्त किया हुवा द्रव्य ( वस्तु ) अर्थात् देवद्रव्य से खरीदे हुए दो प्रकारके पाषाणादि द्रव्यके नाशको देखकर जो साधु उपेक्षा करता है तो वह अनन्तसंसारी होता है । १२६ । बस यही तो कारणहै ज्ञान ध्यान छोडकर हम अपना वक्त पुस्तक बनाने में
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