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अनेक ग्रन्थके कर्त्ता और आदितपागच्छविरुदधारक श्री जगञ्चन्द्रसूरिके शिष्य देवेन्द्रसूरिमहाराजके ज्ञानके आगे मेरा ज्ञान क्या है ? उन महापुरुषोंके सामने मैं ऐसा हूं जैसा सूर्यके सामने खद्योत, इसलिये ऐसे महात्माके वचनोंसे विरुद्ध क्यों भाषण देता हूं ? क्या मेरे भाषणको जैनसमाज मानलेगा ? (मानना तो क्या बल्कि सहस्रशः धिक्कारवाद देंगें ) अगर बेचरदास भाषण से पहिले यह विचार करता तो ऐसा अनुचितकार्य कदापि नहीं करता, जो एक घातकके पातक सभी शास्त्रदृष्टिसें अधिक नीच माना गया है ।
तटस्थ - अगर बचेरदासको कर्मग्रंथ के इस पाठका भान न रहा हो तो अब इसपाठको देखके सुधर जाय तो क्या आश्चर्य है । इस लिये और भी पाठ लिखें जिससे वेचरदासकी आत्माको भी लाभ पहुंचे ।
समालोचक- तुम्हारा यह मानना है कि बेचरदास सुधर जाए परन्तु यह मानना मेरे खयाल से वन्ध्यासे पुत्र प्राप्ति जैसा हैं, क्योंकि बेचरदासने यह भूल अज्ञानावस्थामें नहीं की है किन्तु पूर्वजन्मके धोरपापकर्मो के उदयसे अपने किसी गुप्तइरादे को सफल करनेके लिये जानकर झूठामार्ग पकड़ा है इसलिये ढूंढियोंसेभी अधम बनकर कहदिया कि - ' मैं ग्यारह अंगको मानता हूं और उसमे भी मिश्रण है " - इस का मतलब यह है कि ग्यारह अंगमसभी जिसमें देवद्रव्यकी सिद्धि होगी उसमें 'मिश्रण है' ऐसा कहकर मुक्त हो जाउंगा
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